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नई दिल्ली। सत्तारूढ भारतीय जनता पार्टी ने गुरुवार को राज्यसभा में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस पर आरोप लगाया कि उसने तुष्टिकरण की राजनीति के तहत आतंकवाद पर अंकुश लगाने वाले आतंकवाद निवारण अधिनियम (पोटा) तथा आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (टाडा) को समाप्त कर दिया।

भाजपा के बृजलाल ने गुरूवार को सदन में भारतीय न्याय (द्वितीय) संहिता विधेयक 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा (द्वितीय) संहिता विधेयक 2023 और भारतीय साक्ष्य (द्वितीय) विधेयक 2023 पर संयुक्त रूप से हुई चर्चा शुरू करते हुए कहा कि ये कानून अंग्रेजों ने बनाये थे और यह भारत के अनुरूप नहीं थे। उन्होंने कहा कि लंबे समय तक देश में सत्ता में रही कांग्रेस ने गुलामी की इस निशानी को मिटाने की कभी कोशिश नहीं की। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने इसके उलट तुष्टिकरण की नीति अपनायी और आतंकवाद पर अंकुश लगाने वाले कड़े कानूनाें पोटा तथा टाडा को समाप्त कर दिया।

उन्होंने कहा कि जब देश में आतंकवाद था और विस्फोट होते थे तो अनेक देशों की ओर से अपने नागरिकों को भारत जाने से बचने के परामर्श दिये जाते थे और देश में निवेश नहीं आता था। सदस्य ने कहा कि आज मोदी सरकार की आतंकवाद और भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति है इसीलिए आतंकवादी घटनाओं में कमी आयी है। इससे भारत की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ रही है और भारी मात्रा में निवेश आ रहा है। उन्होंने कहा कि इन नये कानूनों से न्यायालयों पर मुकदमों का बोझ कम होगा।

बीजू जनता दल के सुजीत कुमार ने विधेयकों का समर्थन करते हुए कहा कि ये हमारे संविधान निर्माताओं की आशाओं और आकांक्षाओं के अनुरूप लाये गये हैं तथा देशहित में हैं। इनसे गुलामी की मानसिकता का खात्मा हुआ है। उन्होंने कहा कि अंग्रेजों द्वारा बनाये गये कानूनों में नाम भले ही इंडिया हो लेकिन वह भारत के लिए नहीं थे और इनमें भारतीय लोगों को न्याय नहीं दिया गया था। ये पुराने समय के कानून थे और इनमें सुधार की बहुत अधिक आवश्यकता थी। उन्होंने कहा कि अब आपराधिक मामलों के समाधान में प्रौद्योगिकी की भूमिका निरंतर बढ रही है और इन विधेयकों में इससे संंबंधित प्रावधान भी किये गये हैं।

वाईएसआर कांग्रेस के एस निरंजन रेड्डी ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि इन विधेयकाें में जरूरत के हिसाब से नयी प्रक्रियाओं और अपराधों को जोड़ा गया है। उन्होंने कहा कि इन विधेयकों में पुरानी आपराधिक न्यायिक प्रक्रिया को पूरी तरह से बदला गया है और केवल नाम के लिए बदलाव नहीं किये गये हैं। उन्होंने कहा कि विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति को भेजा गया था और समिति में इसके सभी पहलुओं पर व्यापक विचार विमर्श किया गया है।