दुर्गापुर/कृष्णानगर। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सोमवार को पश्चिम बंगाल में दुर्गापुर के लोगों को इस औद्योगिक जिले के सभी बंद कारखानों को फिर से खोलने का आश्वासन दिया और बताया कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने दुर्गापुर इस्पात संयंत्र तथा यूरिया फैक्टरी के लिए और अधिक फंड देने की योजना बनायी है।
श्री शाह ने दुर्गापुर-बर्धमान से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लोकसभा उम्मीदवार दिलीप घोष के पक्ष में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस सरकार पर आरोप लगाया कि उसने अपने गुंडों को पूरे बंगाल में आतंक का शासन चलाने की मंजूरी दे रखी है तथा कथित जबरन वसूली के लिए उद्योगों को बंद कर दिया गया है। उन्होंने तृणमूल सरकार पर अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिए सीमा पार से घुसपैठियों को बढ़ावा देने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय हितों के खिलाफ कई गैरकानूनी तत्व भी सीमावर्ती क्षेत्रों को आश्रय स्थल बना रहे हैं।
भाजपा नेता ने कहा कि कांग्रेस और तृणमूल रामलला की प्राण प्रतिष्ठा और अयोध्या में राम मंदिर की स्थापना का विरोध कर रहे थे, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में बंगाल के लोगों ने 18 सांसद चुने, जिसके बाद श्री मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल में ऐसा किया।
श्री शाह ने कहा, “हमने ममता बनर्जी और उनके भतीजे को 22 जनवरी को राम लला की प्राण प्रतिष्ठा में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया था, लेकिन वे दोनों नहीं आये क्योंकि उन्हें वोट बैंक खोने का डर है और आप जानते हैं कि उनके वोट बैंक कौन हैं।”
उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाये जाने का कांग्रेस, कम्युनिस्ट और तृणमूल जैसे विपक्षियों ने विरोध किया था, खास तौर पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने चेतावनी दी थी कि खून-खराबा होगा।
भाजपा नेता ने कहा, “जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद से पिछले पांच वर्षों में रक्तपात तो भूल जाइए, पत्थरबाजी की एक भी घटना नहीं हुई।”
उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की आलोचना करते हुए कहा कि 80 वर्षीय व्यक्ति भाजपा पर आरोप लगा रहे हैं कि पार्टी ने राजस्थान और बंगाल में जम्मू-कश्मीर का मामला क्यों उठाया क्योंकि कांग्रेस अपने निहित स्वार्थों के लिए देशवासियों को बांटने में विश्वास रखती है। उन्होंने पिछले 10 वर्षों में मोदी सरकार की उपलब्धियों को सूचीबद्ध करते हुए कहा कि उनमें से कई तृणमूल सरकार के कथित विरोध के कारण बंगाल तक नहीं पहुंच पायी हैं।