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नई दिल्ली। नीति आयोग की शनिवार की बैठक में देश की जनसंख्या के स्वरूप में बदलाव का मुद्दा चर्चा में आया, जिसमें जननांकीय प्रबंधन का विचार प्रस्तुत किया गया।
बैठक के बाद नीति आयोग के उपाध्यक्ष डॉ. सुमन बेरी, सचिव बी.वी. आर. सुब्रमण्यम और आयोग के अन्य सदस्यों ने संवाददाता सम्मेलन में चर्चा के मुख्य मुद्दों की जाननकारी दी। श्री सुब्रमण्यम ने कहा कि मेरी जानकारी में पहली जनसंख्या का मुद्दा नीति आयोग के इस मंच पर आया। उन्होंने यह नहीं बताया कि यह मुद्दा किस सदस्य ने उठा, लेकिन कहा, “यहां जनसंख्या नियंत्रण, बल्कि यहां जननांकीय प्रबंधन शब्द का प्रयोग किया गया।” उन्होंने कहा कि उनकी राय में जननांकीय प्रबंधन से मतलब है कि आप अपनी बूढ़ी होती आबादी का सामना कैसे करते हैं। इसके दो पहलु हैं। पहला यह की बढ़ी होती आबादी के सामाजिक, आर्थिक पहलुओं और जरूरतों पर विचार किया जाए और इसका दूसरा पहलु है कि इसका सामाधन की योजना कैसे बनायी जाए। उन्होंने कहा कि आज भारत में केवल दो -तीन राज्य ऐसे हैं, जिनमें प्रजनन दर जनसंख्या भरपायी के लिए आवश्यक 2.1 प्रतिशत से अधिक है। यहां तक की राजस्थान, मध्य प्रदेश में भी प्रजनन दर भरपायी के लिए आवश्य दर से कम है। उन्होंने कहा कि कुछ राज्यों में यह दर 1.6 प्रतिशत तक गिर गयी है और आने वाले समय में इन राज्यों में जनसंख्या घटने की स्थिति बन सकती है।
आयोग के अर्थशास्त्री डॉ. अरविंद बिरमानी ने कहा कि अगले 15 साल में भारत में जननांकीय स्वरूप में बदलाव तेज होगा।
आज की बैठक में विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए केंद्र और राज्यों के संयुक्त प्रयास के महत्व को रेखांकित करते हुए राज्यों के स्तर पर निवेश के अनुकूल नीतियों और प्रक्रियाओं के विकास, गरीबी शून्य करने और नदियों के राष्ट्रीय ग्रिड के विकास का काम प्राथमिता से आगे बढ़ाने पर बल दिया गया।
केंद्र में नयी सरकार के गठन के बाद आयोग की संचालन परिषद की नौवीं बैठक की अध्यक्षता करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का लक्ष्य देश के जन-जन की आकांक्षाओं से जुड़ा है।
बैठक के बाद आयोग विकसित भारत के लक्ष्य प्राप्त करने के लिए पांच वर्षीय और 25 वर्षीय योजना तैयार करने पर काम कर रहा है।
श्री सुब्रमण्यम ने कहा, “पांच वर्ष की योजना ठोक और विस्तृत होगी, जिसमें लक्ष्यों का मापा जा सकेगा, 25 वर्ष की दूरगामी योजना एक दिशानिर्देश की तरह होगी।” उन्होंने कहा कि पंच वर्षीय योजना पर सभी मंत्रालय और विभाग काम कर रहे हैं।
डॉ. बेरी ने कहा, “हमारी प्रत्यक्ष विदेशी नीति बहुत स्पष्ट है। राज्यों को अपनी रणनीति और प्रक्रियाओं को निवेशकों के अनुकूल बनाने की आवश्यता है।” उन्होंने कहा कि इस दिशा में राज्यों में किये जाने वाले कार्यों की प्रगति नापने का 100 के अंक का एक सूचकांक तैयार किया गया है।
डॉ. बिरमानी ने कहा कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आर्षित करने के लिए राज्य स्तर पर निवेश की दशाएं महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने कहा, “कहा जाता है कि निवेश कुछ राज्यों तक ही सीमित है, लेकिन हर राज्य को अपने यहां एफडीआई और एंकर निवेशक को आकर्षित करने के लिए बेहतर वातावरण बनाने का पूरा मौका है।”
उन्होंने कहा, “प्रधानमंत्री ने आज की बैठक में कहा कि भारत को विनिर्माण और सेवा क्षेत्र दोनों के तीव्र गति से विकास पर ध्यान देना है क्योंकि दोनों साथ-साथ चलते हैं। बैठक में कृषि, सेवा और विनिर्माण तीनों क्षेत्रों को पूरे महत्व के साथ आगे बढ़ाने पर चर्चा की गयी।”
श्री सुब्रमण्यम ने एक सवाल के जवाब में कहा कि की भारत एक बड़ा देश है और इसकी अर्थव्यवस्था का आधार विस्तृत है। भारत केवल एक क्षेत्र या उदेश्य तक सीमित नहीं रह सकता है।
नीति आयोग को खत्म कर पूराने योजना आयोग की तरफ लौटने की मांग को लेकर कुछ मुख्यमंत्रियों की मांग के बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में उपाध्यक्ष और सदस्यों ने कहा कि नीति आयोग एक वास्तविकता है, इसके अपने कार्य है। राज्यों के दृष्टि पत्र के निर्माण में नीति आयोग ने सहायता की है और बहुत से राज्य खुद अब नीति आयोग के तर्ज पर अपने यहां इसी तरह की सलाहकार संस्थाएं बना रहे हैं।
डॉ. बेरी ने इसी मुद्दे पर कहा कि अतित और वर्त्तमान में बड़ा फर्क है। उन्होंने कहा कि नीति आयोग कोई धन वितरित करने वाला संस्थान नहीं, बल्कि यह नीति निर्माण के क्षेत्र में आतंरिक विचार-विमर्थ और आंतरिक परामर्श का मंच है। यह सरकार के लिए परामर्श का आंतरिक पावर हाउस है।
नीति आयोग के सदस्यों ने कहा कि जब योजना आयोग था, तो केंद्र सरकार के विभाजन योग्य संसाधनों में राज्यों की भागदारी 32 प्रतिशत की, जो नयी व्यवस्था 41 प्रतिशत हो गयी है। दोनों चीजें एक-दूसरे से जुड़ी हुयी हैं।