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नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में कथित तौर पर शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार समीर कुलकर्णी की याचिका मंगलवार को खारिज कर दी।
न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश और अरविंद कुमार की पीठ ने याचिका पर सुनवाई करने से इनकार करते हुए कुलकर्णी का पक्ष रख रहे अधिवक्ता से कहा कि वह बॉम्बे उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप करने के इच्छुक नहीं है।
उच्च न्यायालय ने आरोपी कुलकर्णी की याचिका खारिज कर दी थी।
गौरतलब है कि महाराष्ट्र के नासिक जिले के मालेगांव शहर में एक मोटरसाइकिल से बंधे बम फटने से छह लोग मारे गए थे और लगभग 100 लोग घायल हो गए थे।
शीर्ष अदालत के समक्ष याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन के साथ वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने तर्क दिया कि अभियोजन पक्ष ने गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) यूएपीए की धारा 45(2) के तहत मंजूरी नहीं ली है। उन्होंने दलील दी कि इस पृष्ठभूमि में यूएपीए के तहत आरोप कायम नहीं रह सकते। उन्होंने दावा किया कि यूएपीए के तहत केंद्र सरकार से एनआईए द्वारा अभियोजन के लिए मंजूरी नहीं मिली थी।
श्री दीवान ने तर्क दिया कि जब मामला राष्ट्रीय जांच एजेंसी (आईएनए) को सौंपा गया, तो केंद्र द्वारा अनुमति ली जानी चाहिए थी।
इस पर पीठ ने कहा,“हमें निर्णय (उच्च न्यायालय के) में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं मिला।”
न्यायालय ने अप्रैल में विशेष अदालत के समक्ष कुलकर्णी के खिलाफ कार्यवाही पर रोक लगा दी थी।
कुलकर्णी ने दलील दी कि उनका मुख्य मामला यह है कि राज्य सरकार या केंद्र सरकार से अभियोजन के लिए कोई वैध पूर्व अनुमति नहीं होने के कारण मुकदमा आगे नहीं बढ़ सकता।
उन्हें साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित सहित नौ अन्य लोगों के साथ उसी वर्ष विस्फोट की साजिश के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।
आरोपी कुलकर्णी ने बॉम्बे उच्च न्यायालय के 28 जून 2023 के आदेश की सत्यता को चुनौती दी, जिसमें मुंबई की विशेष अदालत के 20 अप्रैल 2023 के आदेश को बरकरार रखा गया था।
एनआईए ने दावा किया कि वर्तमान याचिका याचिकाकर्ता द्वारा कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग का उत्कृष्ट उदाहरण है, क्योंकि मुकदमा का निपटारा होने वाला है।