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नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सांसदों निशिकांत दुबे, मनोज तिवारी और अन्य के खिलाफ 2022 में देवघर हवाईअड्डे पर कथित तौर पर सुरक्षा प्रोटोकॉल तोड़ने का मुकदमा रद्द करने के उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली झारखंड सरकार की याचिका मंगलवार को खारिज कर दी।
न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ ने ये फैसला दिया। पीठ ने हालांकि, राज्य सरकार को जांच के दौरान एकत्र किए गए सबूतों को चार सप्ताह के भीतर विमान अधिनियम, 1934 के तहत अधिकृत अधिकारी को भेजने की स्वतंत्रता दी।
कानून के अनुसार, अधिकारी को यह तय करने का निर्देश दिया गया है कि अधिनियम के तहत शिकायत दर्ज करने की आवश्यकता है या नहीं।
झारखंड में दर्ज नामजद मुकदमे में आरोप लगाया गया है कि प्रतिवादियों -भाजपा सांसदों एवं अन्य ने हवाई अड्डे के वायु यातायात नियंत्रक (एटीसी) के अधिकारियों को एक निजी विमान को उड़ान भरने की अनुमति देने के लिए कथित तौर पर मजबूर किया और धमकी दी, जो सुरक्षा प्रोटोकॉल का उल्लंघन है।
न्यायमूर्ति ओका की अध्यक्षता वाली पीठ ने 18 दिसंबर, 2024 को अपना फैसला सुरक्षित रखा था।
आरोपी सांसदों और अन्य के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत लगाए गए आरोपों में धारा 336 (जीवन या व्यक्तिगत सुरक्षा को खतरे में डालना), धारा 447 (आपराधिक अतिक्रमण) और धारा 448 (घर में अतिक्रमण) के साथ-साथ विमान अधिनियम 1934 की धारा 10 और 11ए भी शामिल हैं।
झारखंड उच्च न्यायालय ने इस मुकदमे को यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि इसके लिए विमान अधिनियम के तहत अपेक्षित शिकायत दर्ज नहीं करायी गयी या मंजूरी नहीं ली गई। अदालत ने फैसला सुनाया कि ऐसे मामलों में विमान अधिनियम के प्रावधान आईपीसी से अधिक मायने रखते हैं।
सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने तर्क दिया कि विमान अधिनियम की धारा 10 और 11ए के तहत जांच के लिए पूर्व मंजूरी अनावश्यक थी।
इस पर, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अधिनियम के तहत अपराधों पर औपचारिक शिकायत दर्ज करने के बाद ही कार्रवाई की जा सकती है।
न्यायमूर्ति ओका ने धारा 336 और 447 जैसे आईपीसी प्रावधानों की प्रयोज्यता के बारे में भी चिंता जताई तथा जीवन को खतरे में डालने या आपराधिक अतिक्रमण के साक्ष्य पर सवाल उठाया। शीर्ष अदालत ने मुकदमे को रद्द करने के झारखंड उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखते हुए जांच के दौरान एकत्र की गई सामग्री को नागरिक उड्डयन महानिदेशक (डीजीसीए) को प्रस्तुत करने की अनुमति दी।
फैसले का मुख्य अंश पढ़ते हुए न्यायमूर्ति ओका ने स्पष्ट किया कि सर्वोच्च न्यायालय उच्च न्यायालय द्वारा मुकदमा रद्द करने के मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगा, लेकिन उसने विमान अधिनियम के तहत आगे की कार्रवाई के लिए अपने निष्कर्ष प्रस्तुत करने के राज्य सरकार के अधिकार की पुष्टि की।