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0 हाईकोर्ट ने महिला की याचिका खारिज की
मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि केवल तत्काल तीन तलाक पर रोक है, तलाक-ए-अहसन पर नहीं। हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच के जस्टिस विभा कंकनवाड़ी और जस्टिस संजय देशमुख ने कहा कि मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम के तहत तलाक की परिभाषा में तलाक के वे रूप शामिल हैं, जिनका प्रभाव तत्काल होता है, या जिन्हें बदला नहीं जा सकता है।

इस कमेंट के साथ ही कोर्ट ने जलगांव के एक शख्स और उसके माता-पिता के खिलाफ दर्ज शिकायत पर मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम की धारा 4 के तहत 2024 में दर्ज मामले को खारिज कर दिया।

इस धारा के तहत कोई भी मुस्लिम व्यक्ति जो अपनी पत्नी को तीन तलाक देता है, जिसे तलाक-ए-बिद्दत कहा जाता है, उसे तीन साल तक की जेल की सजा दी जाएगी।

2021 में हुई थी शादी, 2023 में तलाक का ऐलान किया
रिपोर्ट्स के मुताबिक तनवीर अहमद नाम के शख्स ने 2021 में शादी की थी। वह 2023 में पत्नी से अलग हो गए। तनवीर ने गवाहों की मौजूदगी में दिसंबर 2023 में तलाक-ए-अहसन का ऐलान किया था। पत्नी ने जलगांव के भुसावल बाजार पेठ पुलिस स्टेशन में एक FIR दर्ज कराई। सने यह भी आरोप लगाया कि उसके ससुराल वाले इस फैसले का हिस्सा थे और उन्हें भी समान रूप से जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।
हालांकि तनवीर ने अपनी याचिका में दावा किया कि अधिनियम के प्रावधानों के तहत तलाक का यह तरीका दंडनीय नहीं है। कोर्ट ने कहा कि दर्ज FIR तलाक के मुद्दे से जुड़ी है, इसलिए यह केवल पति के खिलाफ ही सीमित है और ससुराल वालों को इसमें शामिल नहीं किया जा सकता है। अगर मामला जारी रखा जाता है तो यह कानून का दुरुपयोग होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ तलाक-ए-बिद्दत पर लगाई रोक
सुप्रीम कोर्ट ने 22 अगस्त 2017 को केवल तीन तलाक बोल कर शादी तोड़ने को असंवैधानिक बताया। तलाक-ए-बिद्दत कही जाने वाली इस प्रक्रिया पर अधिकतर मुस्लिम उलेमाओं ने भी कहा था कि यह कुरान के मुताबिक नहीं है।