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0 देश के पहले बौद्ध चीफ जस्टिस, 6 महीने का कार्यकाल
नई दिल्ली। जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई ने बुधवार को भारत के 52वें चीफ जस्टिस के रूप में शपथ ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जस्टिस गवई को सीजेआई पद की शपथ दिलाई। मौजूदा सीजेआई संजीव खन्ना का कार्यकाल 13 मई को खत्म हो चुका है।

राष्ट्रपति भवन में आयोजित शपथ ग्रहण समारोह में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, केंद्रीय मंत्री अमित शाह, राजनाथ सिंह, जे पी नड्डा, अर्जुन राम मेघवाल, निवर्तमान मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, शीर्ष अदालत के अन्य न्यायाधीश और कुछ पूर्व न्यायाधीश समेत कई गणमान्य व्यक्ति मौजूद थे। इस अवसर पर न्यायमूर्ति गवई की पत्नी, मां तथा परिवार के अन्य सदस्य मौजूद थे। शपथ ग्रहण करने के बाद सबसे पहले उन्होंने अपनी मां के पैर छुए।

सीजेआई खन्ना के बाद वरिष्ठता सूची में जस्टिस गवई का नाम था, इसलिए जस्टिस खन्ना ने उनका नाम आगे बढ़ाया। हालांकि, उनका कार्यकाल सिर्फ 6 महीने का है। सीजेआई गवई देश के दूसरे दलित और पहले बौद्ध चीफ जस्टिस हैं। सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर दिए प्रोफाइल के मुताबिक, जस्टिस गवई 24 मई 2019 को सुप्रीम कोर्ट जज के रूप में प्रमोट हुए थे। उनके रिटायरमेंट की तारीख 23 नवंबर 2025 है। 

न्यायमूर्ति गवाई जाने -माने राजनीतिज्ञ, प्रमुख अंबेडकरवादी, पूर्व सांसद एवं कई राज्यों के राज्यपाल रह चुके आर एस गवई के पुत्र हैं। उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से बी.ए., एलएलबी करने के बाद 16 मार्च, 1985 से वकालत शुरू की थी। उन्होंने 1987 से 1990 तक बॉम्बे उच्च न्यायालय में स्वतंत्र रूप से वकालत की। उसके बाद बॉम्बे उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ में वकालत की। वह 14 नवंबर, 2003 को बॉम्ब उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश और 12 नवंबर, 2005 को स्थायी न्यायाधीश बने। न्यायमूर्ति गवई ने उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान मुंबई में मुख्य पीठ के साथ-साथ नागपुर, औरंगाबाद और पणजी में सभी प्रकार के कार्यभार वाली पीठों की अध्यक्षता की है।
वह शीर्ष अदालत में कई मामलों में संवैधानिक पीठ का हिस्सा रहे हैं, जिनमें नोटबंदी, अनुच्छेद 370, चुनावी बॉन्ड योजना और अनुसूचित जाति एवं जनजाति श्रेणियों के भीतर उप वर्गीकरण के मामले शामिल थे। उन्होंने अनुसूचित जाति / जनजाति के बीच क्रीमी लेयर शुरू करने की पुरजोर वकालत की थी। 

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