
नई दिल्ली। रक्षा मंत्रालय ने रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया 2020 को सेनाओं की जरूरतों के अनुरूप बनाने के उद्देश्य से इस की व्यापक समीक्षा के लिए महानिदेशक (अधिग्रहण) की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया है।
रक्षा मंत्रालय ने गुरूवार को बताया कि वर्ष 2025 को ‘सुधारों का वर्ष’ घोषित करने के मद्देनजर इसकी समीक्षा करने का निर्णय लिया है। इसका उद्देश्य सरकार की मौजूदा नीतियों और पहलों के साथ तालमेल बैठाना भी है।
भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी अपूर्व चंद्रा को समिति का प्रधान सलाहकार नियुक्त किया गया है। वह महानिदेशक (अधिग्रहण) के रूप में कार्य कर चुके हैं। समिति में रक्षा मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी, रक्षा उद्योग और शिक्षा जगत के प्रतिनिधि शामिल हैं। समिति ने कार्य शुरू करते हुए परामर्श शुरू कर दिया है और आगामी पांच जुलाई तक हितधारकों से सुझाव आमंत्रित किए हैं।
मंत्रालय ने कहा कि यह कदम राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए समयबद्ध तरीके से सशस्त्र बलों की परिचालन आवश्यकताओं और आधुनिकीकरण को पूरा करने के लिए उठाया जा रहा है। इसके अलावा अधिग्रहण प्रक्रियाओं के सरकार की नीतियों और पहलों के साथ सामंजस्य के लिए भी यह कवायद की जा रही है। इससे स्वदेशी रूप से डिजाइन और विकसित प्रणालियों के माध्यम से प्रौद्योगिकी संचार को बढ़ावा देकर आत्मनिर्भरता हासिल की जा सकेगी।
साथ ही इसका उद्देश्य निजी क्षेत्र के लिए संयुक्त उद्यमों और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की सुविधा के माध्यम से देश में रक्षा विनिर्माण को बढ़ावा देकर, प्रत्यक्ष विदेश निवेश के माध्यम से विदेशी मूल उपकरण निर्माताओं को प्रोत्साहित करना भी है । इससे भारत को वैश्विक रक्षा विनिर्माण और रक्षा रखरखाव, मरम्मत तथा ओवरहाल (एमआरओ) केंद्र के रूप में स्थापित करके ‘मेक इन इंडिया’ को सक्षम बनाना है। समीक्षा का निर्णय स्वदेशी प्रौद्योगिकी संचार के लिए स्टार्टअप, नवाचार और निजी रक्षा उद्योग पर ध्यान केंद्रित करते हुए सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों में डिजाइन और विकास को बढ़ावा देना है।
समिति ने हितधारकों से वर्गीकरण, व्यापार में आसानी, परीक्षणों का संचालन, अनुबंध के बाद प्रबंधन, फास्ट ट्रैक प्रक्रियाएं, और एआई जैसी नई तकनीकों को अपनाने सहित अधिग्रहण प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने के लिए नीति संबंधी परिवर्तन के बारे में सुझाव मांगे हैं। इसके अलावा प्रक्रिया में अस्पष्टता को खत्म करने, विसंगतियों को दूर करने और प्रक्रियात्मक स्पष्टता बढ़ाने के लिए भाषा में सुधार तथा अन्य प्रासंगिक मुद्दों पर भी सुझाव मांगे गये हैं।