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0 कांकेर में शव दफनाने पर बवाल, एक-दूसरे को दौड़ा-दौड़ाकर पीटा
0 डीआईजी-एएसपी भी घायल, इलाके धारा 144 लागू
कांकेर। कांकेर जिले के आमाबेड़ा क्षेत्र के बड़े तेवड़ा गांव में शव दफनाने को लेकर आदिवासी और धर्मांतरित समुदाय के बीच हिंसक झड़प हो गई। गुरुवार को आदिवासी समाज के लोग ईसाइयों को डंडे मारकर भगा रहे थे। इसके जवाब में धर्मांतरित समुदाय के लोगों ने आदिवासी समाज के लोगों को दौड़ा-दौड़ाकर पीटा।
इस पर गुस्साए आदिवासियों ने सरपंच के घर में तोड़फोड़ कर दी। इसके बाद आदिवासी समाज के लोगों ने गांव के चर्च में आग लगा दी। ग्रामीण इसके बाद भी नहीं रुके और 3 हजार से ज्यादा की भीड़ आमाबेड़ा पहुंच गई। यहां भी एक चर्च को आग के हवाले कर दिया। भीड़ तीसरी चर्च को फूंकने आगे बढ़ रहे थे। इस दौरान पुलिस ने लाठीचार्ज किया। घटना में कई ग्रामीण, कवरेज कर रहे कुछ पत्रकार और एएसपी अंतागढ़ आशीष बंशोड़ और डीआईजी तुकाराम कांबले भी घायल हुए हैं। इलाके में धारा 144 लागू की गई है।
दरअसल, विवाद तब शुरू हुआ जब गांव के सरपंच रजमन सलाम के पिता चमरा राम की मृत्यु के बाद उनका शव गांव में ही दफना दिया गया। सरपंच के परिवार ने धर्म परिवर्तन किया था, जिससे ग्रामीण आक्रोशित थे। पिछले 2 दिनों से ग्रामीण शव को कब्र से बाहर निकालने की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे। गुरुवार को पुलिस और प्रशासन की संयुक्त टीम ने भारी सुरक्षा के बीच शव को बाहर निकाला। गांव में तनावपूर्ण स्थिति बनी हुई है। पुलिस ने पूरे गांव को छावनी में तब्दील कर दिया है।

सरपंच पर दादागिरी का आरोप
ग्रामीणों ने इसे नियमों के खिलाफ बताते हुए कड़ा विरोध दर्ज कराया। ग्रामीण ने बताया कि गांव के सरपंच रजमन सलाम के पिता का देहांत होने के बाद उसके शव को सुबह लगभग 7 बजे दफनाया गया। सरपंच अपने मूल धर्म से बाहर होकर दूसरे धर्म को मानता है। नियम है कि जिस भी धर्म का मानने वाला हो उसके शव दफन के लिए एक निश्चित जगह दिया जाता है। गांव का सरपंच होने के नाते उसने दादागिरी दिखाई और गांव में ही अपने पिता के शव को दफनाया। ग्रामीणों ने पुलिस और प्रशासन पर संरक्षण देने का आरोप लगाया है।

परंपरागत रीति-रिवाजों से अंतिम संस्कार की मांग पर अड़े
आदिवासी समाज के लोगों का कहना है कि जिस प्रकार शव को दफन किया गया है, वह गांव की परंपराओं और सामाजिक मान्यताओं के विपरीत है। उनका आरोप है कि बिना समाज की सहमति और परंपरागत रीति रिवाजों का पालन किए बिना शव को दफन कर दिया गया, जिसे वे स्वीकार नहीं कर सकते। इसी कारण आदिवासी समाज के लोग दफन स्थल से शव को बाहर निकालकर परंपरानुसार अंतिम संस्कार किए जाने की मांग पर अड़े हुए हैं। वहीं, धर्मांतरित समाज के लोगों का कहना है कि अंतिम संस्कार उनके धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार किया गया है और इसमें किसी प्रकार की अनियमितता नहीं है।

कांकेर के 14 गांवों में पास्टर-पादरियों पर बैन
कांकेर जिले में धर्म परिवर्तन की घटनाओं के बाद 14 गांवों में पास्टर और पादरियों के प्रवेश पर बैन लगा दिया गया। ग्रामीणों के मुताबिक यह कदम उन्होंने अपनी परंपरा और संस्कृति की रक्षा के लिए उठाया है। इन 14 गांवों में से एक जामगांव है जिसकी जनसंख्या करीब 7 हजार है। यहां 14-15 परिवारों ने अघोषित रूप से ईसाई धर्म अपना लिया है। इसी वजह से आदिवासी समुदाय और धर्म परिवर्तन कर चुके परिवारों के बीच दूरी बढ़ गई है। वहीं, ईसाई समुदाय के लोगों का कहना है कि उनके रिश्तेदार भी अब मिलने नहीं आ पाते, क्योंकि जिन गांवों में वे रहते हैं, वहां भी इसी तरह के बोर्ड लगे हैं। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने भी इन ग्राम सभाओं के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया था। कोर्ट ने माना कि जबरन या प्रलोभन देकर धर्मांतरण रोकने के लिए लगाए गए ये बोर्ड असंवैधानिक नहीं हैं, बल्कि स्थानीय संस्कृति की रक्षा के लिए ग्राम सभा का एहतियाती कदम हैं।

पेसा अधिनियम के तहत ग्रामीणों ने ऐसा किया
हर एक बोर्ड पर यह लिखा गया है कि बस्तर पांचवीं अनुसूची क्षेत्र है और पेसा अधिनियम 1996 के तहत गांवों को अपनी परंपराओं और रूढ़िवादी संस्कृति को संरक्षित करने का अधिकार है। बोर्डों पर स्पष्ट शब्दों में लिखा है कि गांवों में मसीही समाज का धार्मिक आयोजन वर्जित है।

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