सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा का काम न केवल समग्रता के साथ किया जाना चाहिए बल्कि इस दौरान उन कारणों को पहचानकर उनका निवारण भी किया जाना चाहिए जिनके चलते आतंकियों और उनके समर्थकों ने फिर से सिर उठाने का दुस्साहस किया।
कश्मीर में कश्मीरी हिंदुओं और सिखों के साथ अन्य राज्यों के मजदूरों को चुन-चुनकर निशाना बनाने की खौफनाक घटनाओं के बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का जम्मू-कश्मीर जाना इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि अनुच्छेद 370 हटने के बाद वह पहली बार इस केंद्र शासित राज्य पहुंचे हैं। यह स्वाभाविक है कि जम्मू और कश्मीर संभाग की तीन दिन की उनकी इस यात्रा का उद्देश्य विकास योजनाओं के साथ सुरक्षा व्यवस्था की भी समीक्षा करना है। हाल की आतंकी घटनाओं और उसके बाद प्रवासी मजदूरों के पलायन के सिलसिले को देखते हुए ऐसा करना आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य भी है। सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा का काम न केवल समग्रता के साथ किया जाना चाहिए, बल्कि इस दौरान उन कारणों को पहचानकर उनका निवारण भी किया जाना चाहिए, जिनके चलते आतंकियों और उनके समर्थकों ने फिर से सिर उठाने का दुस्साहस किया। कश्मीर में जितनी जरूरत आतंकियों पर दबाव बनाने और उन्हें बचकर निकलने का अवसर न देने की है, उतनी ही उनके समर्थकों पर शिकंजा कसने की।
आतंकियों के समर्थक केवल वही नहीं हैं, जो उन्हें शरण और सहायता देते हैं, बल्कि वे भी हैं जो उनके पक्ष में माहौल बनाते हैं। चूंकि इसमें नेता, नौकरशाह और अन्य सरकारी कर्मचारी भी शामिल पाए गए हैं इसलिए सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा कहीं अधिक गहनता से करने और उसका दायरा बढ़ाने की भी जरूरत है। रह-रह कर होने वाली आतंकी घटनाएं यही इंगित करती हैं कि कश्मीर में आतंकवाद और अलगाववाद के समर्थक अब भी सक्रिय हैं। इन तत्वों को न केवल बेनकाब करना होगा, बल्कि उन्हें पूरी तरह निष्क्रिय भी करना होगा।
अब जब गृह मंत्री यह कह रहे हैं कि आतंकवाद पर अंतिम प्रहार करने का समय आ गया है, तब फिर ऐसा न केवल किया जाना चाहिए, बल्कि ऐसा होते हुए दिखना भी चाहिए। यह करके ही कश्मीर में वह माहौल बनाने में सफलता मिलेगी, जिसमें वहां विधानसभा चुनाव कराना संभव होगा। यह अच्छा हुआ कि गृह मंत्री ने राज्य का दर्जा बहाल करने के अपने वादे को दोहराया, लेकिन कश्मीर में कानून एवं व्यवस्था को सामान्य बनाने और वहां विकास योजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए यह भी आवश्यक है कि सीमा पार से होने वाली आतंकियों की घुसपैठ थमे। यह ठीक नहीं कि सीमा पार से आतंकियों की घुसपैठ का सिलसिला कायम है। इसका उदाहरण है पुंछ के जंगलों में आतंकियों का जमावड़ा। इन आतंकियों को मार गिराने के साथ ही यह सुनिश्चित करना भी आवश्यक है कि भविष्य में सीमा पार से आतंकी देश की सीमा में घुसने न पाएं।
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