इटली की राजधानी रोम में जी-20 के महत्वपूर्ण शिखर सम्मेलन में भाग लेने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जलवायु सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए ब्रिटेन के ग्लासगो शहर में हैं। इस 26वें जलवायु सम्मेलन से भारत समेत समूची दुनिया को बड़ी उम्मीदें हैं क्योंकि धरती का तापमान बढऩे के कारण हो रहे जलवायु परिवर्तन से मानवता ही नहीं, बल्कि हमारे पूरे ग्रह के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। विश्व को अपेक्षा है कि राजनेता, अधिकारी और विशेषज्ञ मिलकर कुछ ठोस उपाय निर्धारित करेंगे।
प्रधानमंत्री मोदी इस सम्मेलन में भारत के राष्ट्रीय घोषणा को दुनिया के सामने रखेंगे। भारत दुनिया के उन देशों में है, जो कार्बन उत्सर्जन को घटाने तथा स्वच्छ ऊर्जा का उपभोग बढ़ाने की दिशा में ठोस पहल कर रहे हैं। कार्बन और ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन धरती का तापमान बढऩे का मुख्य कारण है। वैश्विक उत्सर्जन में भारत का योगदान अभी 6.6 प्रतिशत है। भारत सरकार ने आगामी दशकों में इसे शून्य के स्तर तक ले जाने का लक्ष्य निर्धारित किया है।, लेकिन किसी समय सीमा से इसे नहीं जोड़ा गया है क्योंकि भारत को अपनी विकास आकांक्षाओं का भी ध्यान रखना है।
अगर अन्य देशों के उत्सर्जन के साथ भारत की तुलना करें, तो यह अपेक्षाकृत कम है। चीन के उत्सर्जन का आंकड़ा जहां 27 प्रतिशत है, वहीं अमेरिका का योगदान 11 प्रतिशत है। यूरोपीय संघ के देश सात प्रतिशत ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जित करते हैं। भारत की आबादी चीन के लगभग बराबर है, पर अमेरिका और यूरोप से बहुत अधिक है। चीन समेत इन सभी देशों ने तो बड़ी आर्थिक प्रगति की है।
निश्चित रूप से भारत की भी जिम्मेदारी है, लेकिन उत्सर्जन में कटौती धीरे-धीरे ही हो सकती है, अन्यथा औद्योगिक और अन्य गतिविधियों पर नकारात्मक असर पड़ेगा। पृथ्वी का तापमान बढ़ाने में ऐतिहासिक रूप से विकसित देश जिम्मेदार हैं। ऐसे में उन्हें अविकसित और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को सहयोग भी देना चाहिए।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि वे कार्बन स्पेस का सामान वितरण करने, उपायों को अपनाने के लिए वित्तीय सहयोग देने, तकनीक मुहैया कराने तथा सतत विकास एवं समावेशी विकास जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं को सम्मेलन में रेखांकित करेंगे। भारत ने 2015 के पेरिस जलवायु सम्मेलन के संकल्पों के प्रति हमेशा अपनी प्रतिबद्धता जताई है। प्रधानमंत्री मोदी की पहल पर अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन भी बना है, जिसमें सौ से अधिक देश जुड़े हैं।
संयुक्त राष्ट्र और अनेक देशों ने भारत के प्रयासों की सराहना भी की है। आशा है कि विकसित देश भारत द्वारा उठाये गये उचित बिंदुओं पर गौर करते हुए परस्पर सहयोग से जलवायु परिवर्तन की आपात चुनौती का समाधान निकालेंगे। हालिया ऊर्जा संकट ने फिर इंगित किया है कि चीन और पश्चिमी देश भी जीवाश्म-आधारित ईंधनों पर आश्रित हैं तथा उनका प्रति व्यक्ति औसत कार्बन उत्सर्जन भारत से बहुत अधिक है। उम्मीद है कि सम्मेलन सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए व्यावहारिक हल तय करेगा।
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