महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले में 50 लाख के इनामी मिलिंद तेलतुमड़े समेत 26 नक्सलियों को मार गिराने में मिली सफलता एक बड़ी कामयाबी है। नक्सली संगठनों के खिलाफ इस तरह की कामयाबी का सिलसिला कायम रखने की जरूरत है ताकि उन्हें नए सिरे से सिर उठाने का मौका न मिले। यह आवश्यक है कि नक्सलियों पर जैसा दबाव महाराष्ट्र पुलिस ने बनाया है वैसा ही नक्सल प्रभावित अन्य राज्यों की पुलिस भी बनाए।
बेहतर यह होगा कि केंद्र सरकार सभी नक्सल प्रभावित राज्यों को नक्सलियों के खिलाफ कोई साझा अभियान चलाने के लिए प्रोत्साहित करे। ऐसा इसलिए किया जाना चाहिए, क्योंकि यह देखने में आ रहा है कि जब किसी एक राज्य की पुलिस नक्सलियों पर शिकंजा कसती है तो वे दूसरे राज्य में जाकर छिप जाते हैं। नक्सलियों को कहीं पर भी छिपने और चैन लेने की सुविधा नहीं दी जानी चाहिए। इसलिए और भी नहीं, क्योंकि वे कुछ कमजोर भले ही पड़े हों, लेकिन अभी उनके दुस्साहस का दमन नहीं हुआ है। वे छत्तीसगढ़, बिहार और झारखंड समेत अन्य राज्यों में रह रहकर वारदात करते ही रहते हैं। इतना ही नहीं, वे जब तब सुरक्षा बलों को भी निशान बनाते हैं।
उचित यह होगा कि आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बने और उगाही करने वाले गिरोहों में तब्दील हो गए नक्सली संगठनों का पूरी तौर पर सफाया करने का बीड़ा उठाया जाए। इसके तहत नक्सली संगठनों को वैचारिक खुराक देने और अन्य तरह से उनकी सहायता करने वालों की नकेल भी कसी जानी चाहिए। यह किसी से छिपा नहीं कि अर्बन नक्सल कहे जाने वाले नक्सलियों के हमदर्द महानगरों में भी सक्रिय हैं। ऐसे कुछ तत्व तो बुद्धिजीवी और मानवाधिकारवादी होने का चोला भी धारण किए हुए हैं।
चिंताजनक यह भी है कि इन सबकी खुले छिपे तरीके से पैरवी करने वाले भी सक्रिय हैं। गढ़चिरौली में 50 लाख के इनाम वाले जिस नक्सली को मार गिराया गया उसके नक्सलवाद समर्थक भाई को विद्वान और विचारक बताने वालों की कमी नहीं है। ऐसे नक्सल समर्थकों में कुछ तो इतने बेशर्म हैं कि वे नक्सलियों को बंदूकधारी गांधीवादी भी कहते हैं। इन सब तत्वों की गहन निगरानी होनी चाहिए। इसी के साथ इसकी भी तह तक जाने की जरूरत है कि नक्सली संगठनों को आधुनिक हथियार और विस्फोटक कहां से मिल रहे हैं। गढ़चिरौली में मारे गए नक्सलियों के पास से एके-47 समेत जैसे आधुनिक हथियार मिले उससे यह साफ है कि अभी उन तक उनकी आपूर्ति पहले की तरह जारी है। इस सिलसिले को प्राथमिकता के आधार पर खत्म करना होगा, अन्यथा नक्सली संगठन आंतरिक सुरक्षा के लिए सिरदर्द बने ही रहेंगे।
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