
निस्संदेह उन्नत सड़कें किसी भी समाज की उन्नति की वाहक बनती हैं और उसकी पहचान भी बनाती हैं। आमतौर पर पिछड़ा कहे जाने वाले पूर्वी उत्तर प्रदेश में रफ्तार का पूर्वांचल एक्सप्रेसवे बनना विकास की नयी इबारत लिख सकता है। इस इलाके के लिये यह सड़क क्रांति कही जा सकती है। एक ओर जहां रफ्तार से समय व ऊर्जा की बचत होगी, वहीं औद्योगिक विकास की संभावनाओं का विस्तार होगा। अटलबिहारी वाजपेयी से लेकर नरेंद्र मोदी की केंद्र सरकार में देश में सड़कों के निर्माण में बड़ी कामयाबी हासिल की गई है। उससे भी महत्वपूर्ण यह है कि पूर्वांचल एक्सप्रेसवे का इस्तेमाल वायुसेना की जरूरतों के लिये आपातकालीन उपयोग के लिये किया जा सकता है। प्रधानमंत्री द्वारा वायुसेना के भारी-भरकम मालवाहक विमान सी-130 जे सुपर हरक्यूलिस से सुल्तानपुर वाले भाग में उतरना इसका प्रमाण है। मौजूदा परिदृश्य में इसका वायुसेना बेहतर ढंग से उपयोग कर सकती है। यह भी महत्वपूर्ण है कि इस 22,500 करोड़ की परियोजना को रिकॉर्ड तीन साल के समय में पूरा किया गया। बावजूद इसके देश दो साल से कोरोना संकट से जूझ रहा है और इस अवधि में देशव्यापी लॉकडाउन का असर भी पड़ा। इस सफलता में जहां राजनीतिक इच्छाशक्ति की भूमिका है, वहीं जमीन देने वाले किसानों, इंजीनियरों तथा निर्माण कार्य में लगे कामगारों का भी देश की जनता को ऋणी होना चाहिए। इस निर्माण से जहां पूर्वांचल के नौ जिलों गाजीपुर, मऊ, आजमगढ़, सुल्तानपुर, अमेठी, अंबेडकर नगर, फैजाबाद बाराबंकी में विकास की बयार तेज होगी, वहीं आसपास के शहर भी इससे लाभान्वित होंगे। साथ ही गाजीपुर से दिल्ली की दूरी घटकर दस घंटे रह जायेगी। इतना ही नहीं, उत्तर प्रदेश होकर बिहार जाने वाले यात्रियों का समय व पेट्रोल बचेगा तथा रेलवे पर भी यात्रियों का दबाव कम होगा। निस्संदेह देश में बढ़ती जनसंख्या के मद्देनजर बड़ी सड़क परियोजनाओं को सिरे चढ़ाना वक्त की जरूरत ही है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि पंजाब व हरियाणा जैसे राज्यों में विकास की गति में बेहतर सड़कों के जाल की भी बड़ी भूमिका रही है।
यह सुखद ही है कि अटलबिहारी वाजपेयी सरकार में देश के चार महानगरों को आधुनिक सड़कों से जोडऩे का बीज विचार स्वर्णिम चतुर्भुज योजना के रूप में आरंभ हुआ और उसे मनमोहन सरकार के दौरान अंतिम रूप दिया गया। इसी दिशा में प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना से गांवों के विकास को गति मिली। यदि राज्य सरकारें भी पूरी जिम्मेदारी से इन सड़कों के रखरखाव के प्रति गंभीर होती तो देश के हर व्यक्ति को सड़क क्रांति का लाभ मिलता।
उत्तर प्रदेश में यमुना एक्सप्रेसवे, लखनऊ-आगरा एक्सप्रेसवे के निर्माण के बाद अब पूर्वांचल एक्सप्रेसवे का निर्माण राज्य में राजनीतिक नेतृत्व की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। यहां यह तथ्य नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि हाल के दिनों में शिलान्यास व उद्घाटन कार्यक्रमों में तेजी के राजनीतिक निहितार्थ भी हैं। प्रदेश में कुछ माह बाद विधानसभा चुनाव भी हैं। लेकिन विकास के लिये यदि राजनीति हो तो कोई बुरी बात नहीं है। लेकिन प्रधानमंत्री के उद्घाटन से पहले साइकिल सवार सपाइयों द्वारा एक्सप्रेसवे के उद्घाटन की होड़ दर्शाना अच्छी बात नहीं है। जनता का पैसा है, जनता के विकास के लिये है, राजनेता तो एक माध्यम हैं, जनता के प्रतिनिधि के रूप में विकास योजनाओं को बेहतर ढंग से सिरे चढ़ाने के लिये। होड़ तो ऐसी कार्य संस्कृति के लिये होनी चाहिए जो समय पर उच्च गुणवत्ता के मानकों के साथ विकास योजनाओं को मूर्त रूप दे सके। बहरहाल, अब तय है कि जिस पूर्वी उत्तर प्रदेश के लाल नौकरियों के लिये दूसरे प्रदेशों में धक्के खाते रहते थे, विकास का यह रास्ता क्षेत्र में तरक्की व रोजगार की नयी इबारत लिखेगा। युवाओं के देश में युवाओं को अवसरों की तलाश है, सफलता की राह वे खुद निकाल लेंगे। इस एक्सप्रेसवे को बदहाल आधारभूत संरचना वाले उत्तर प्रदेश के लिये नये अवसर के रूप में देखा जाना चाहिए। भरोसा किया जाना चाहिए कि योगी सरकार में बना यह 340 किलोमीटर लंबा एक्सप्रेसवे उ. प्र. में विकास की नयी इबारत लिखेगा।
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