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दशकों से जारी परिवार नियोजन कार्यक्रम के चलते सकल जनन दर (टीएफआर) यानी प्रति महिला से बच्चों की औसत संख्या में गिरावट आई है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के पांचवें संस्करण के अनुसार, राष्ट्रीय स्तर पर 2015-16 में यह दर 2.2 से गिरकर वर्तमान में 2.0 पर आ गई है। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या विभाग के अनुसार, जिस देश में औसतन प्रति महिला से 2।1 से कम बच्चे हैं यानी कि जहां प्रतिस्थापन प्रजनन इससे नीचे है, वहां मौजूदा पीढ़ी स्वयं को प्रतिस्थापित करने के लिए पर्याप्त बच्चे पैदा नहीं कर रही है।
इससे जनसंख्या में गिरावट का रुझान शुरू हो जाता है। एनएफएचएस 2019-20 से स्पष्ट है कि भारत के शहरी इलाकों में प्रजनन दर 1.6 और ग्रामीण इलाकों में 2.1 है। इससे जनसंख्या में ठहराव का संकेत प्राप्त होता है। जनसंख्या वृद्धि संतुलन के लिए 2.1 की दर किसी भी देश के लिए आदर्श स्थिति होती है। सर्वेक्षण के मुताबिक, बिहार (3), उत्तर प्रदेश (2.4), झारखंड(2।3), मेघालय (2.9) और मणिपुर (2.2) का टीएफआर राष्ट्रीय औसत से अधिक है।
मध्य प्रदेश और राजस्थान का राष्ट्रीय औसत के बराबर तथा पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र का टीएफआर 1.6 दर्ज हुआ है। आंकड़ों से पता चलता है कि प्रजनन, परिवार नियोजन, सही समय पर विवाह और महिला सशक्तीकरण में बेहतर प्रदर्शन के चलते टीएफआर में गिरावट दर्ज हुई है। भारत में मातृ और शिशु स्वास्थ्य सुधारों के चलते ऐसे आंकड़े सामने आ रहे हैं। हालांकि, यह नमूना सर्वेक्षण है, व्यापक जनसंख्या के स्तर पर ये आंकड़े कितने सटीक हैं, यह आगामी राष्ट्रीय जनगणना से साफ होगा।
लैंगिक अनुपात और जन्म के समय लैंगिक अनुपात की बेहतर हो रही स्थिति से स्पष्ट है कि महिला सशक्तीकरण के उपायों ने हमें सही दिशा में आगे बढ़ाया है। साल 2005-06 में 15 वर्ष से कम आयु की आबादी 34.9 प्रतिशत थी, वह 2019-20 में 26.5 प्रतिशत पर आ गयी है। भारत अब भी युवा आबादी वाला देश है, हालांकि उम्रदराज लोगों की भी संख्या बढ़ रही है। इससे नये नीतिगत बदलाव अपनाने की आवश्यकता होगी। ऐसे में केवल जनन स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने के बजाय समग्र जीवनचक्र की बेहतरी आवश्यक है। महिलाओं की शिक्षा में सुधार से महिला श्रमबल भागीदारी पैटर्न में भी बदलाव हो रहा है। श्रम बाजार के संरचनात्मक बदलाव को देखते हुए नये सिरे से काम करने की आवश्यकता है, ताकि भारत के विकास में आनेवाली बुनियादी अड़चनों को दूर किया जा सके। युवा आबादी अगले दो-तीन दशकों तक देश की आर्थिक तरक्की को गति देने में अहम भूमिका निभा सकती है, बशर्ते सार्वजनिक स्वास्थ्य और कौशलयुक्त शिक्षा में पर्याप्त निवेश को प्रोत्साहित किया जाए।