सैन्य आवश्यकताओं की पूर्ति करने तथा अंतरराष्ट्रीय रक्षा बाजार में अपनी उपस्थिति सुदृढ़ करने के इरादे से भारत सरकार कुछ वर्षों से उत्पादन बढ़ाने पर जोर दे रही है. इस प्रयास के उत्साहजनक परिणाम भी सामने आने लगे हैं। केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के अनुसार, 2014 से अब तक भारत ने 38 हजार करोड़ रुपये मूल्य के रक्षा उत्पादों का निर्यात किया है।
इस प्रगति को देखते हुए 2024-25 तक निर्यात को 35 हजार करोड़ रुपये करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। आत्मनिर्भर भारत के संकल्प तथा रक्षा क्षेत्र में निवेश एवं निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने संबंधी नीतियों को देखते हुए इस लक्ष्य तक पहुंचना मुश्किल नहीं है। वर्तमान समय में हमारा देश लगभग 70 देशों को रक्षा उत्पादों और उपकरणों की आपूर्ति कर रहा है। इसका एक अर्थ यह है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय उत्पादों पर भरोसा मजबूत हो रहा है और उनकी मांग बढ़ रही है। इस वित्त वर्ष में कुल राष्ट्रीय निर्यात को भी 400 अरब डॉलर करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किया है, जिसमें से 50 प्रतिशत निर्यात सितंबर तक पूरा हो गया है। बीती दो तिमाहियों में निर्यात में अच्छी बढ़त हुई है। यह आयाम इसलिए और भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि इसी अवधि में भारत ने कोरोना महामारी की बेहद आक्रामक और घातक दूसरी लहर का सामना किया। पारंपरिक रूप से कुछ समय पहले तक रक्षा निर्यात के क्षेत्र में भारत की बहुत साधारण उपस्थिति थी। अब न केवल इसमें बदलाव आ रहा है, बल्कि निर्यात में उल्लेखनीय योगदान देकर रक्षा क्षेत्र अर्थव्यवस्था का भी बड़ा हिस्सा बनने की ओर अग्रसर है। साथ ही, रोजगार बढ़ाने और तकनीकी अनुसंधान में भी इसकी भूमिका का विस्तार हो रहा है। पिछले कुछ वर्षों में 12 हजार सूक्ष्म, छोटे और मध्यम उद्यमों का प्रवेश रक्षा क्षेत्र में हुआ है। हम जानते है कि ये उद्यम व्यापक स्तर पर रोजगार भी मुहैया कराते हैं तथा आर्थिक विकास को आधार भी प्रदान करते हैं। सकल घरेलू उत्पादन में इन उद्यमों का योगदान 29 प्रतिशत है तथा इनमें लगभग 10 करोड़ लोग कार्यरत हैं। हाल में सरकार ने अंतरिक्ष अनुसंधान में भी निजी क्षेत्र के लिए दरवाजा खोल दिया है। हर क्षेत्र में नयी तकनीक का आगमन हो रहा है, नये स्टार्टअप आ रहे हैं तथा नवोन्मेष की प्रवृत्ति बढ़ रही है। सरकार ने अंतरिक्ष और रक्षा क्षेत्र का आकार 85 हजार करोड़ होने का आकलन लगाया है। इन क्षेत्रों में निजी क्षेत्र की भागीदारी 18 हजार करोड़ रुपये हो चुकी है। किसी भी बड़े उद्योग के साथ कई छोटे-बड़े सहायक उत्पादक और कारोबारी जुड़े होते हैं। ये दोनों पक्ष परस्पर निर्भर होते हैं। ऐसे में बड़ी पूंजी और तकनीक के आने के साथ छोटे व मझोले उपक्रमों के बढऩे की संभावना बढ़ जाती है। आशा है कि भारत जल्दी ही रक्षा क्षेत्र के बड़े आयातक देश से अहम निर्यातक बन सकता है।
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