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मार्च में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक 6.95 प्रतिशत जा पहुंचा, जो बीते 17 महीनों में सबसे अधिक है। बीते तीन माह से खुदरा मुद्रास्फीति की दर 6 प्रतिशत से अधिक रही। ऐसा बहुत सारी वस्तुओं और सेवाओं के महंगे होते जाने से हुआ है। ताजा आंकड़ों के बाद अर्थशास्त्रियों का मानना है कि महंगाई के पहले के आकलनों में संशोधन करना पड़ेगा। उन्होंने आशंका जतायी है कि आगामी सितंबर तक मुद्रास्फीति छह प्रतिशत से अधिक रहेगी। आबादी के बहुत बड़े हिस्से, खास कर कम आमदनी और गरीब तबके, के लिए निश्चित रूप से यह बेहद चिंताजनक है। कोरोना महामारी से पैदा हुए हालात से अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे उबर रही है, लेकिन अब उसकी राह में महंगाई एक बड़ा रोड़ा बन सकती है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में पेट्रोलियम पदार्थों के दाम में अस्थिरता तथा वैश्विक आपूर्ति शृंखला में अवरोध भारत समेत दुनिया के अधिकतर देशों में महंगाई में ऐतिहासिक बढ़ोतरी का मुख्य कारण है। कोरोना से आयी मंदी से निकलने के लिए उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है, जिससे ऊर्जा स्रोतों और कच्चे माल की मांग में लगातार वृद्धि हो रही है। इससे बिजली के दाम भी बढ़े हैं। लेकिन जिन चीजों की बहुतायत है, उनके मूल्य बढऩे से समस्या और गंभीर हुई है। यह भी देखा गया है कि घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में बहुत से उत्पादकों ने घाटे की भरपाई करने के लिए दाम बढ़ा दिये हैं। हालांकि, औद्योगिक और कारोबारी गतिविधियों में तेजी आने से रोजगार की स्थिति में कुछ सुधार हुआ है, पर वह अब भी संतोषजनक नहीं है। साथ ही, लोगों की आमदनी में बेहतरी नहीं आयी है। ऐसे में महंगाई के दबाव से लोग अपनी जरूरतों में कटौती करने लगे हैं। इस वजह से बाजार में समुचित मांग नहीं है। अगर हालात नहीं सुधरेंगे, तो घटती मांग उत्पादन और वितरण पर नकारात्मक असर डाल सकती है। इससे अर्थव्यवस्था की बढ़ोतरी कुंद हो सकती है। फिर बेरोजगारी दर भी बढ़ सकती है। अंतरराष्ट्रीय राजनीति और आर्थिकी में कोई उल्लेखनीय सुधार होने की उम्मीद भी कम ही है। कोरोना काल से ही सरकार की ओर से उद्योगों व उद्यमों को सहायता देने तथा गरीब आबादी को राहत देने के लिए कई उपाय किये गये हैं। लेकिन बेलगाम महंगाई उन कोशिशों पर पानी फेर सकती है। इसलिए सरकार और रिजर्व बैंक की ओर से कुछ ठोस पहल की जानी चाहिए। अधिक मुद्रास्फीति होने की स्थिति में मौद्रिक नीति फ्रेमवर्क के प्रावधानों को लागू करने के लिए कोशिश जरूरी है। इसके तहत मुद्रास्फीति को दो से छह प्रतिशत के बीच रखने का निर्देश है। रिजर्व बैंक को इस दिशा में कदम उठाना चाहिए। माना जा रहा है कि भारत का केंद्रीय बैंक मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए रेपो रेट बढ़ाने का निर्णय ले सकता है। खाद्य वस्तुओं तथा ऊर्जा स्रोतों के दाम में राहत देने पर सबसे अधिक जोर दिया जाना चाहिए, ताकि आम जन को महंगाई से कुछ राहत मिल सके।