
चीन की विस्तारवादी नीति अभी भी थमने का नाम नहीं ले रहा है। ड्रैगन गाहे-बगाहे अपनी सीमा से लगे किसी न किसी देश की जमीन को हड़पने के लिए कोई न कोई नया पैंतरा खेलते रहता है। अब उसकी नजर भूटान पर है।
भूटान को रिझाने के लिए चीन ने जो पैकेज प्रस्ताव किया है, उसकी जितनी निंदा की जाए, कम है। अब इसमें कोई संदेह की बात ही नहीं कि इस पैकेज प्रस्ताव के जरिए चीन जिस सकतेंग इलाके को हड़पना चाहता है, उससे सर्वाधिक नुकसान भारत को है। जिस इलाके पर चीन दावा कर रहा है, वहां पहुंचने के लिए उसे भारत के राज्य अरुणाचल प्रदेश से होकर गुजरना होगा। यह एक तरह से भीतर घुसकर वार करने की कूटनीति है। यदि भूटान से यह जमीन चीन हड़पने में सफल रहा, तो अरुणाचल प्रदेश के एक बडे़ हिस्से पर वह दावा करने की स्थिति में पहुंच जाएगा। पैकेज प्रस्ताव में और क्या बातें हैं, यह तो अभी बहुत स्पष्ट नहीं है, लेकिन चीन एक जगह जमीन लेकर दूसरी जगह अपना दावा छोड़ने की इच्छा जता रहा है। चीन को दोनों ही जगह कुछ भी गंवाना नहीं है, पाना ही है। अब तक भारत के साथ खड़ा रहा भूटान चीन को चुभ रहा है। पाकिस्तान, नेपाल, म्यांमार जैसे देश तो पहले ही चीन की गोद में बैठे नजर आ रहे हैं, लेकिन भूटान एक ऐसा संप्रभु देश है, जो चीन की मनमानी के सामने झुकने को तैयार नहीं है।
निश्चय ही यह भारत के लिए सचेत रहने का समय है। गौर करने की बात है, अरुणाचल प्रदेश को चीन अनेक बार असभ्यता दर्शाते हुए अपने नक्शे में दिखा देता है, लेकिन उसने भूटान के सकतेंग इलाके को कभी अपने नक्शे में नहीं दिखाया है। आज अचानक उसे सकतेंग का महत्व समझ में आया है, तो हमें कतई भोलेपन से काम नहीं लेना चाहिए। हमारी कूटनीतिक सक्रियता बढ़ जानी चाहिए। भूटान को अपने साथ रखने के लिए भारत जो भी कर सकता है, उसे जरूर करना चाहिए। विश्व मंचों पर भी चीन की चालाकी उजागर की जानी चाहिए।
दक्षिण की ओर अपने विस्तार के लिए चीन की योजनाएं और साजिशें, दोनों ही समान रूप से पुरानी हैं। तिब्बत के विशेषज्ञ अक्सर याद दिलाते रहे हैं कि जब चीन ने तिब्बत को कब्जे में लिया था, तब यह कहा गया था कि तिब्बत तो हथेली का मुख्य हिस्सा है, पांच उंगलियों (फाइव फिंगर्स) पर कब्जा करने के बाद ही काम पूरा होगा। चीनी मनमानी की ये पांच उंगलियां हैं- लद्दाख, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, भूटान और नेपाल। इनमें से लद्दाख, अरुणाचल प्रदेश और नेपाल को चीन धीरे-धीरे खुरच रहा है। भूटान से भी उसके विवाद रहे हैं, लेकिन उसकी विगत कुछ वर्षों की आक्रामकता इसलिए भी है, क्योंकि उसके पड़ोसियों में भारत के अलावा सिर्फ भूटान ही ऐसा देश है, जो उसकी बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव(बीआरआई) में शामिल नहीं है। यह बात चीन को लगातार चुभ रही है और उसकी साजिशों से यह जाहिर हो जाता है कि वह भारत को जिम्मेदार मानता है। लेकिन सकतेंग पर उसकी गिद्ध दृष्टि से हमें विचलित होने की बजाय पूरी तैयारी से मुकाबला करना चाहिए। अपनी पारंपरिक जगहों से कतई पीछे नहीं हटना है। यह ज्यादा उदारता दिखाने का समय नहीं है। अपने निरंतर नए दावों से वह भारत को परेशान करना चाहता है, ठीक उसी तरह से भारत को उसकी कमजोर नसों को पकड़ना होगा। विश्व मंचों पर चीन की मनमानियों का सुनियोजित, नियम-सम्मत विरोध भी भारत के लिए अब जरूरी है। जो देश हमें हर स्तर पर निशाना बनाना चाहता है, उसके विरुद्ध हमारी दृढ़ कूटनीतिक सक्रियता ही सबसे सही जवाब है।