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कोरोना वायरस का कहर पूरी दुनिया में जारी है। इस बीच दुनियाभर में इसके वैक्सीन तैयार करने का काम जोरों पर है। ऐसे में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने इसके वैक्सीन तैयार करने का दावा किया है। पर पिछले कुछ समय में कोरोना विषाणु के जो नए-नए रूप सामने आ रहे हैं, उन्हें देखते हुए वैज्ञानिकों के समक्ष चुनौती बड़ी है। पर आक्सफोर्ड के प्रयोग और सफल परीक्षण से जो नतीजे देखने को मिले हैं। वे बता रहे हैं कि यह टीका काफी हद तक लोगों को बचाने में कामयाब होगा।

दुनियाभर में इस वक्त कोरोना वायरस की करीब 100 से अधिक वैक्सीन पर काम चल रहा है। कोरोना महामारी के दौर में इससे बड़ी खुशखबरी और क्या हो सकती है कि ब्रिटेन में कोरोना टीके का परीक्षण अपने पहले दौर में एकदम खरा उतरा है। आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में इंसानों पर किए गए कोरोना के टीके के परीक्षण के जो उत्साहवर्धक नतीजे सामने आए हैं, उनसे यह उम्मीद और पक्की हो गई है कि इस वैश्विक महामारी से निपटने का तोड़ जल्द ही निकल आएगा।

दवा कंपनी एस्ट्राजेनेका के साथ मिल कर विकसित किए गए इस टीके के पहले चरण के परीक्षण का काम अप्रैल में ही शुरू कर दिया गया था और तब इस प्रयोग के तहत अठारह से पचपन साल तक के आयुवर्ग वाले एक हजार सतहत्तर लोगों को यह टीका लगाया गया था। यों तो भारत सहित दुनिया के कई देश कोरोना का टीका विकसित करने में जुटे हैं और अमेरिका जैसे देश का दावा है कि वह मंजिल के करीब पहुंच चुका है और जल्द ही टीका तैयार हो जाएगा।

उधर, चीन ने भी इस दिशा में काफी कामयाबी हासिल कर लेने की बात कही है। रूस से तो चौंकाने वाली खबर आई है कि उसने पहले ही इसका टीका ईजाद कर लिया था, जिसे देश के बड़े लोगों और अमीरों को लगा भी दिया है।

आक्सफोर्ड में तैयार किया गया टीका कितना कारगर साबित होगा, यह बड़ा सवाल है। पिछले कुछ समय में कोरोना विषाणु के जो नए-नए रूप सामने आ रहे हैं, उन्हें देखते हुए वैज्ञानिकों के समक्ष चुनौती बड़ी है। पर आक्सफोर्ड के प्रयोग और सफल परीक्षण से जो नतीजे देखने को मिले हैं, वे बता रहे हैं कि यह टीका काफी हद तक लोगों को बचाने में कामयाब होगा।

सबसे ठोस नतीजा तो यह निकला है कि जितने लोगों को यह टीका लगाया गया, उनमें इसके बहुत ज्यादा दुष्प्रभाव देखने को नहीं मिले, बल्कि इससे शरीर में एंटीबॉडी बनने के साथ ही श्वेत रक्त कणिकाएं भी बनीं और इसका परिणाम यह हुआ कि शरीर की प्रतिरोधात्मक क्षमता में आशातीत वृद्धि देखी गई। इस तरह परीक्षण में यह टीका दोहरी सुरक्षा वाला साबित हुआ है।

हालांकि यह परीक्षण का पहला दौर है और इसकी प्रक्रिया जारी है। अभी ब्रिटेन के अलावा दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील में भी दस हजार लोगों पर इसका परीक्षण चल रहा है। पहली बार मिली यह कामयाबी इलाज के दरवाजे खोलने में बड़ी भूमिका निभाएगी, इससे कतई इंकार नहीं किया जा सकता।

भारत भी कोरोना का टीका विकसित करने की दौड़ में किसी से पीछे नहीं है। इस वक्त देश के बारह बड़े अस्पतालों और चिकित्सा संस्थानों में एक टीके का परीक्षण चल भी रहा है। कोवैक्सीन नाम का यह टीका भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) और भारत बायोटेक ने मिल कर तैयार किया है। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि जो टीका तैयार किया गया है, वह जानवरों पर परीक्षण में पूरी तरह से खरा उतरा है।

अगर इंसानों पर परीक्षण में भी यह खरा उतरा तो निश्चित ही भारत भी जल्द ही इस दिशा में बड़ी कामयाबी हासिल कर सकता है। कोरोना का टीका विकसित करने के काम में भारत बायोटैक, सीरम इंस्टीट्यूट आफ इंडिया सहित देश की सात बड़ी कंपनियां लगी हैं। जब तक टीका नहीं आ जाता, तब तक महामारी के प्रसार को रोकने के उपाय ही बचाव का एकमात्र विकल्प हैं। महामारियों के टीके विकसित करना लंबा और जटिल काम होता है, जिसमें टीके को परीक्षण के कई स्तरों से गुजारना होता है और इसमें जरा-सी भी चूक दुनिया को नए संकट में डाल सकती है।