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चीन के साथ सीमा पर विगत 45 वर्षों से जिस उदारता को भारत निभाता चला आ रहा था, उसमें अब बदलाव जितना स्वाभाविक है, उतना ही स्वागतयोग्य भी। सीमा पर जरूरत पड़ने पर हथियार प्रयोग को जो मंजूरी मिली है, वह चीन की ही साजिशों का नतीजा है। आम तौर पर वह परोक्ष रूप से हमें घेरता आ रहा था, लेकिन अब जब उसने प्रत्यक्ष रूप से भारतीय उदारता की भारी कीमत वसूल ली है, तब भारत के रक्षा मंत्री के नेतृत्व में जरूरत पड़ने पर सेना को हथियार प्रयोग की छूट कतई गलत नहीं है। अब जब सीमा पर जरूरत पड़ी, तो बंदूकों का इस्तेमाल करने के लिए सेना को दिल्ली से पूछने की जरूरत नहीं पड़ेगी। सेना के कमांडर ही तत्काल फैसला ले सकेंगे। सबसे बड़ी बात कि यह फैसला तीनों सेनाओं के प्रमुखों की भागीदारी में हुआ है। सेना में ही नहीं, बल्कि देश में भी यह भावना रही है कि सेना के हाथ न बांधे जाएं, क्योंकि इससे दुश्मनों का मनोबल बढ़ता है।
हम अपने पड़ोसियों को ऐसे आश्वस्त क्यों करते रहे हैं कि हम उनका अहित नहीं करेंगे? यह नीति अच्छे दिनों के लिए तो ठीक है, जब सीमा विस्तार का इरादा किसी के मन में नहीं हो, लेकिन जब चीन खुलेआम भारतीय जमीन पर दावे करता है, तब ऐसे किसी समझौते या उदार व्यवहार को ताक पर रख देना ही बेहतर है। भारत ने चीन की किसी भूमि पर दावा नहीं किया है। चीन के सीमा विस्तार के खिलाफ भारत में उठने वाली आवाजों को खामोश ही रखा गया है। हम पड़ोसी धर्म निभाते रहे हैं, लेकिन चीन क्या कर रहा है, यह दुनिया को भी पता चलना चाहिए। हमारी सरकार को भी अपनी माटी की रक्षा के लिए साहस का परिचय देना चाहिए। भारत ने अपनी सैन्य-नीति में जो ताजा बदलाव किए हैं, वह कायम रहने चाहिए। जब चीन हमें निश्चिंत नहीं देखना चाहता, तब हम उसे क्यों बैठे-बिठाए आश्वस्त रखें?
घाटी-दर-घाटी लाठी-डंडों से धकियाते हुए सीमा में बदलाव का मौका उसे अब नहीं देना चाहिए। भारत के पास जो अपना प्रामाणिक कागजी नक्शा है, उसे जमीनी नक्शे से पुख्ता तौर पर मिला लेना चाहिए और देश को भी बताना चाहिए कि हमारी माटी कहां तक है। कम से कम यह तो बताया ही जा सकता है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा कहां है? वास्तविक नियंत्रण रेखा का आदर करने के लिए चीन को विवश करना चाहिए और साथ ही, हमेशा के लिए सीमा विवाद को सुलझाने की पहल शुरू हो जानी चाहिए। ध्यान रहे, रूस ने जब कड़ाई का परिचय दिया, तभी चीन ने उसके साथ अपने सीमा विवाद को सुलझाया। चीन-रूस के बीच 4,209 किलोमीटर लंबी सीमा का जब समाधान निकल सकता है, तो चीन-भारत की 3,500 किलोमीटर लंबी सीमा का निपटारा कैसे नहीं हो सकता? सीमा विवाद का निपटारा हमेशा के लिए इसलिए भी जरूरी है, ताकि छोटे-छोटे घाव या विवाद की गुंजाइश न रहे। चीन अगर भारत के साथ तार्किक सीमा समाधान नहीं चाहता है, तो यह भी भारत-चीन के लोगों के साथ ही दुनिया को भी पता होना चाहिए। किसी की मंशा बुरी है, तो उसे उजागर करने में ही भारत की भलाई है। और एक बार जब मंशा स्पष्ट हो जाए, तो भारत को चीन के प्रति अपनी सामरिक नीति ही नहीं, बल्कि अपनी समग्र नीति का निर्धारण करना चाहिए।