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स्मार्टफोन, टैब या डिजिटल तकनीक के मानव मस्तिष्क पर प्रभाव की पड़ताल लगातार चलती रही है। यह एक बड़ा सवाल है कि आधुनिक तकनीक के ये यंत्र क्या हमारी प्राकृतिक क्षमताओं को प्रभावित करने लगे हैं? सिनसिनाटी यूनिवर्सिटी में हुए एक नए शोध के मुताबिक, स्मार्ट तकनीक से जुड़े बहुत सारे नकारात्मक पक्ष हैं, पर इसके सुखद पक्ष भी हैं। चर्चा में रहने के बावजूद कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है, जो यह दर्शाता हो कि स्मार्टफोन और डिजिटल तकनीक हमारी जैविक संज्ञानात्मक क्षमताओं को नुकसान पहुंचाती है। नेचर ह्यूमन बिहेवियर में प्रकाशित शोधपत्र में शोधकर्ताओं के समूह ने डिजिटल युग के विकास के बारे में विस्तार से बताया है। यह देखना महत्वपूर्ण है कि स्मार्ट तकनीक कैसे हमारी सोच की पूरक बनती है? कैसे हमें उत्कृष्टता प्राप्त करने में मदद करती है? हम अपनी जैविक क्षमताओं को जिस तरह से बदलना चाहें, इसमें स्मार्टफोन या डिजिटल तकनीक हमारा सहयोग करती है। यह पूरी तरह से हम पर निर्भर करता है कि हम तकनीक की मदद से खुद को कैसे ढालना या बनाना चाहते हैं। तकनीकी आमतौर पर बाधक नहीं बन रही है, बल्कि सहयोग कर रही है। जैसे, आपका स्मार्टफोन स्टेडियम का रास्ता जानता है, ताकि आपको नक्शा देखने या लोगों से मदद मांगने-पूछने की जरूरत न पड़े। समय की भी बचत होती है और दिमाग कुछ और सोचने की स्थिति में होता है। हम 2021 में पेन और कागज के सहारे जटिल गणितीय समस्याओं को हल नहीं कर रहे और न फोन नंबर याद कर रहे हैं। कंप्यूटर, टैबलेट और स्मार्टफोन सहायक के रूप में काम करते हैं। ये ऐसे उपकरण के रूप में काम करते हैं, जो याद रखने, गणना करने और जानकारी सहेजने व जरूरत पडऩे पर उसे प्रस्तुत करने में अच्छे होते हैं। स्मार्ट तकनीक निर्णय लेने के कौशल को भी विकसित करती है। स्मार्टफोन कई तरह की तकनीक के इस्तेमाल की सुविधा देता है। तकनीक अनावश्यक श्रम से हमें बचाती है और अवसर देती है कि हम कुछ और नया रचें। तकनीक चेतावनी भी देती है, आपको समय का पाबंद भी बनाती है, स्मार्ट बनने में आपकी सहायता करती है। इसके बारे में यह कहने के प्रमाण नहीं हैं कि यह हमें बेवकूफ, पराधीन या मंदबुद्धि बना रही है। ताजा शोध से पहले भी स्मार्टफोन तकनीक पर कई शोध हो चुके हैं। हालांकि, बच्चों के बारे में स्पष्ट तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता, आगे और शोध की जरूरत है। क्या स्मार्टफोन बच्चों को असामाजिक बना रहा है? क्या वह उन्हें चिड़चिड़ा और अवसाद ग्रस्त बना रहा है? क्या स्मार्टफोन बच्चों की सक्रियता घटा रहा है? इसमें तो कोई शक नहीं कि स्मार्टफोन का अतिरेकी इस्तेमाल किसी के लिए भी नुकसानदेह हो सकता है। मानव व्यवहार और मानव मस्तिष्क पर स्मार्टफोन के प्रभाव की पड़ताल आगे गहराई से जारी रहनी चाहिए। ज्यादातर डॉक्टर यह मानते हैं कि कम से कम सामान्य जीवन और नींद में यह दखल न दे, तो ज्यादा बेहतर है। मानव को तकनीक या स्मार्टफोन के सदुपयोग पर जोर देना चाहिए। दुरुपयोग किसी भी चीज का वर्जित है। स्मार्टफोन का इस्तेमाल जब हर काम में बढ़ता जा रहा है, तब तो हमें और भी सतर्क व सजग भाव से उसके सदुपयोग का ही ज्यादा प्रचार करना चाहिए, ताकि वह हमारे समेकित विकास में सहयोगी बने।