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दिल्ली उच्च न्यायालय ने ट्विटर के खिलाफ  दायर याचिका की सुनवाई करते हुए जो सख्त रुख दिखाया है, उसके बाद इस कंपनी को एहसास हो जाना चाहिए कि वह भारतीय नियम-कायदों को हल्के में नहीं ले सकती। अदालत ने कंपनी से न केवल दो-टूक शब्दों में पूछा कि आखिर 'ग्रीवांस ऑफिसरÓ की नियुक्त के लिए उसे कितना वक्त चाहिए, बल्कि आगाह भी कर दिया कि वह प्रक्रिया की आड़ में अपनी मनमानी नहीं कर सकती और न ही वक्त जाया कर सकती है। 21 जून को ही ट्विटर के भारत में नियुक्त शिकायत निवारण अधिकारी धर्मेंद्र चतुर ने इस्तीफा दे दिया था। उसके बाद से अब तक इस पद का खाली रहना बताता है कि कंपनी 25 मई से लागू नए नियमों को आत्मसात करने को लेकर बहुत गंभीर नहीं है। वह भी तब, जब इसकी कुछ बातों को लेकर भारत सरकार पहले ही कड़ी आपत्ति दर्ज करा चुकी है और इसके पास सरकारी प्रावधानों के तहत हासिल वैधानिक संरक्षण की रियायत भी अब नहीं है।
विडंबना यह है कि संवाद का मंच होते हुए भी यह कंपनी विवादों को अधिक न्योता दे रही है। अभी चंद रोज पहले एक अन्य मामले में संसदीय समिति के सामने भी उसका रुख समाधान निकालने वाला नहीं था। हालांकि, वहां भी सरकार ने बिल्कुल स्पष्ट कर दिया कि कंपनी को भारत के कानूनों का सम्मान करना ही पड़ेगा। हैरानी की बात यह है कि ट्विटर कंपनी सोशल मीडिया के अन्य मंचों, यहां तक कि अपने साथी संगठन से भी सबक नहीं ले रही। हाल ही में केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने नए नियमों के आलोक में गूगल, फेसबुक और इंस्टाग्राम द्वारा आपत्तिजनक सामग्रियों के हटाए जाने की तारीफ की थी। ऐसे भी ब्योरे सामने आए हैं कि नए नियमों के लागू होने के बाद फेसबुक ने लगभग तीन करोड़ पोस्ट के खिलाफ कार्रवाई की है, तो वहीं गूगल ने यू-ट्यूब और अन्य प्लेटफॉर्मों से लगभग 60 हजार लिंक हटा दिए हैं। ट्विटर एक लोकप्रिय मंच है। भारत में इसके करोड़ों यूजर्स हैं और  विस्तार की अपार संभावनाएं भी। ऐसे में, उसे अधिक जिम्मेदारी का प्रदर्शन करना चाहिए, लेकिन अब तक का उसका रवैया इसके उलट नजर आ रहा है। भारत के लोग अपनी अभिव्यक्ति की आजादी ही नहीं, अपने राष्ट्रीय हितों और मानवीय गरिमा को लेकर भी बेहद सतर्क रहे हैं। अपने लोकतांत्रिक अधिकारों के इस्तेमाल में वे ट्विटर का सकारात्मक इस्तेमाल भी खूब करते हैं, लेकिन यदि कोई शरारती तत्व देश के मानचित्र या इसके नायकों का अपमान करता हुआ कुछ पोस्ट करता है, तो उन्हें ट्विटर से त्वरित समाधान भी चाहिए। विवादास्पद बातों और सामग्रियों का अर्थशास्त्र चाहे जो भी हो, फर्जी खबरों, आपत्तिजनक व भड़काने वाली सामग्रियों से किसी भी देश और समाज को नुकसान पहुंचाने की छूट मान्य नहीं हो सकती। न अमेरिका में इसकी इजाजत है, और न भारत देगा। कोई लोकतांत्रिक देश अपने नागरिकों की आजादी में कटौती करके न तो आदर्श व्यवस्था रच सकता है और न ही सभ्य समाज गढ़ सकता है। लेकिन आजादी और अराजकता के बीच की रेखा सबको स्पष्ट दिखनी चाहिए। ट्विटर या किसी भी अन्य सोशल मीडिया मंच को अभिव्यक्ति की आजादी का दम भरते हुए यह हमेशा याद रखना चाहिए कि जिम्मेदारी का दामन उसके हाथ से छूटने न पाए।