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कोरोना के कारण अर्थव्यवस्था को इस वर्ष भी पिछले वर्ष की तरह झटके सहने पड़े। अर्थव्यवस्था की गति अबाधित रहे,इसके लिए टीकाकरण ही एकमात्र रास्ता है। इस वर्ष के बजट में कोविड टीकाकरण अभियान को 35 हजार करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं। अप्रैल 2020 में लगे बेहद सख्त लॉकडाउन में जीएसटी संग्रह में 70 हजार करोड़ रुपए की भारी गिरावट देखी गई थी।
इसी तरह का अनुपात अन्य फर्मों में भी देखा जा सकता है। कंपनी के सभी कर्मचारियों को टीका लगाने पर आने वाली लागत लॉकडाउन एवं क्वारंटीन की वजह से एक महीने में ही उत्पादन में हुए नुकसान का छोटा हिस्सा भर है। हमें ऐसे सिद्धांत पर चलना चाहिए कि हम तभी सुरक्षित हैं, जबकि हर व्यक्ति सुरक्षित है।ऐसे में हमें कर्मचारियों एवं उनके परिवार, घर में काम करने वाले लोगों, रिक्शा चालकों, दूध वालों, सब्जी वालों, सेवा प्रदाताओं, दुकानदारों एवं फेरीवालों को टीका लगाना होगा।
भारत में शुरूआत में टीकों की पॉलिसी को लेकर भी सवाल उठते रहे। संशोधित नीति के अनुसार केंद्र सरकार 75 फीसदी टीके खरीदेगी और उन्हें राज्य सरकारों को मुफ्त में उपलब्ध कराएगी। शेष 25 फीसदी टीकों की खरीद निजी अस्पताल पूर्व निर्धारित कीमत पर करेंगे।टीकाकरण की गति अब धीमी है। इस गति को दुगुनी करने की आवश्यकता है। स्वयं केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव के अनुसार प्रति दिन 97 लाख टीकाकरण होना चाहिए, लेकिन यह आंकड़ा प्राय: 40 से 50 लाख तक ही सीमित रह जाता है।
टीका और आईपीआर: कंपनियों ने कोविड महामारी के फैलाव के साल भर के भीतर ही कई टीकों का विकास कर उल्लेखनीय काम किया है। भारत और दक्षिण अफ्रीका ने विश्व व्यापार संगठन से टीकों पर आईपीआर अर्थात बौद्धिक संपदा अधिकार अस्थायी रूप से हटाने का अनुरोध किया है। जी-7 ने इस विचार पर सहानुभूति पूर्ण रवैया अपनाया है, लेकिन अभी तक कोई फैसला नहीं हो पाया है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखकर टीका पेटेंट के लिए अनिवार्य लाइसेंस जारी करने का सुझाव दिया था। क्या ऐसा करना ठीक है?
पेटेंट का आशय कृत्रिम रूप से तैयार संपत्ति पर दिए गए अधिकारों से है। पेटेंट एक तय अवधि (फिलहाल 20 वर्ष) के लिए अस्थायी एकाधिकार देते हैं। पेटेंट के लिए अनूठापन, स्पष्टता एवं उपयोगिता के परीक्षणों को पूरा करना आवश्यक होता है। विकसित एवं विकासशील देशों के बीच होने वाली चर्चा के केंद्र में पेटेंट की ताकत एवं संरक्षण अवधि होती है। यह संपदा अधिकार नवाचार में निवेश को प्रोत्साहन देता है। लेकिन खुलासे की पारस्परिक जरूरत पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है।
पेटेंट व्यवस्था के पीछे का मकसद यह है कि मानवता नई खोज के अलावा उसके प्रसार एवं इस्तेमाल से भी लाभान्वित हो। समाज पेटेंट की मियाद खत्म होने के बाद भी खोज से होने वाले स्थायी लाभ के एवज में आविष्कार को अस्थायी एकाधिकार देता है। प्रसार एवं इस्तेमाल सिर्फ व्यापक खुलासे से ही हो सकता है। खोजकर्ता को खोज की जानकारी सार्वजनिक करने के लिए प्रोत्साहन देना होता है, लिहाजा पेटेंट का अधिकार दिया जाता है।वर्ष 1995 में संपन्न व्यापार संबंधी बौद्धिक संपदा अधिकार (ट्रिप्स) समझौते के तहत सभी देशों को बौद्धिक संपदा के संरक्षण के लिए अपने यहाँ कानून लेकर आने थे। भारत ने भी ऐसा किया और हमारे यहाँ लागू कानून पूरी तरह ट्रिप्स समझौते के अनुकूल हैं। ट्रिप्स समझौता राष्ट्रीय सरकारों को यह अधिकार देता है कि वे एक पेटेंट उत्पाद के भी घरेलू उपयोग के लिए अनिवार्य लाइसेंस दे सकती हैं। देश खुद ही यह तय कर सकते हैं कि बाध्यकारी लाइसेंस जारी करना कब सही है? स्वास्थ्य आपातकाल की स्थिति इसके लिए एकदम माकूल है और कोविड महामारी तो किसी अन्य स्वास्थ्य आपात स्थिति से बहुत आगे की बात है।
देशों को पहले टीका विनिर्माता से लाइसेंस हासिल करने की कोशिश करनी चाहिए। अगर वे मना करते हैं, फिर वे अनिवार्य लाइसेंस का तरीका अपना सकते हैं। तब भी पेटेंट धारक को एक वाजिब लाइसेंस शुल्क का भुगतान करना जरूरी है। ऐसा लगेगा कि बाध्यकारी लाइसेंस का सबसे असरदार इस्तेमाल ऐसा कदम उठाए बगैर ही उसका लाभ ले लेना है। विश्व व्यापार संगठन से पेटेंट अधिकार हटाने की मांग कर भारत भी वही काम कर रहा है,लेकिन इसकी रफ्तार को और तेज करने की जरूरत है। मेरा विनम्र सुझाव है कि हमें एक समयसीमा तय कर देनी चाहिए और उससे आगे मामला जाने पर हम बाध्यकारी लाइसेंस जारी कर देंगे।
निष्कषर्: सक्षम बाजारों की पहचान कई खरीददारों एवं विक्रेताओं से होती है,ताकि किसी एक खरीददार या विक्रेता के पास कीमतें तय करने का अधिकार न हो। बाजारों में खुली एवं समान सूचना की जरूरत होती है। इसका मतलब है कि टीके की असरकारिता, कीमत, उपलब्धता और आपूर्ति की गुणवत्ता एवं मानकों के बारे में व्यापक जानकारी पारदर्शी ढंग से साझा की जाए। ऐसा लगता है कि कोविड एक देशज बीमारी बनकर हमारे बीच ही रहेगी।
फिर भारत में टीकाकरण का सालाना कार्यक्रम चलाने की स्थायी क्षमता विकसित करनी होगी। देश के कम से कम 90 करोड़ लोगों का टीकाकरण आवश्यक है। इसके लिए 180 करोड़ टीके के डोज की आवश्यकता है। हमारा उद्देश्य यह होना चाहिए कि अगले तीन महीनें में बेहद सक्षम फार्मा कंपनियाँ प्रतिदिन लाखों टीका उत्पादन करें और सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र मिलकर प्रतिदिन 1 करोड़ लोगों का टीकाकरण करे। इसमें सरकार की शक्तियों और बाजार की शक्तियों, दोनों का अधिकतम उपभोग होना चाहिए। इसके बाद भी अर्थव्यवस्था ही गति प्रदान किया जा सकता है।