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उत्तर प्रदेश के कई जिलों में फैली रहस्यमय बीमारी ने सरकार की नींद हराम कर दी है। हालांकि इसे डेंगू बुखार बताया जा रहा है, क्योंकि इसके लक्षण काफी हद तक डेंगू से मिलते हैं, पर हकीकत यह है कि अभी ठीक-ठीक चिह्नित नहीं किया जा सका है कि यह बीमारी है क्या। बीमारी की असल वजह न पता हो, तो उपचार में मुश्किलें आती ही हैं। यही वजह है कि इस बीमारी के चलते सरकारी आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश के विभिन्न जिलों में अब तक पौने दो सौ से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। इसमें बच्चों की संख्या अधिक है। हालांकि गोरखपुर और उससे सटे पूर्वी उत्तर प्रदेश के जिलों में बरसों से इनसेफेलाइटिस यानी दिमागी बुखार का प्रकोप देखा जाता है। इस बुखार की चपेट में आकर हर साल सैकड़ों बच्चे अपनी जान गंवा देते हैं। मगर इस साल इसका दायरा पूर्वी उत्तर प्रदेश से आगे बढ़ गया है। फीरोजाबाद, कानपुर आदि जिलों में इसका फैलाव अधिक देखा जा रहा है। हालांकि सरकार का दावा है कि इस बीमारी से पार पाने के पर्याप्त इंतजाम कर दिए गए हैं, विशेष शिविर लगा कर इलाज किया जा रहा है, पर ये सब इंतजाम कारगर साबित नहीं हो रहे। हर साल उत्तर प्रदेश में बरसात के बाद बाढ़ का पानी उतरने और जगह-जगह जलजमाव की वजह से इनसेफेलाइटिस यानी जापानी बुखार या दिमागी बुखार का प्रकोप देखा जाता है। बरसाती पानी में पनपने वाले मच्छरों की वजह से यह बीमारी फैलती है। इसीलिए जब फीरोजाबाद में रहस्यमय बुखार फैलना शुरू हुआ तो वहां के प्रशासन ने लोगों से कूलर साफ और बंद रखने की अपील की। डेंगू मच्छरों की बढ़वार रोकने के लिए छिड़काव कराया जाने लगा। करीब पंद्रह साल पहले जब गोरखपुर में इनसेफेलाइटिस का प्रकोप बढ़ा था और उसमें चार हजार से अधिक बच्चों के मारे जाने के आंकड़े आए थे, तब विश्व स्वास्थ्य संगठन की टीम वहां पहुंची थी। उसने लंबे अध्ययन के बाद बताया था कि उस क्षेत्र में पैदा होने वाले एक विशेष प्रकार के मच्छर की वजह से यह बीमारी फैलती है। फिर उससे पार पाने के लिए दवाएं तय हो सकी थीं। तबसे इलाज का वही तरीका अपनाया जा रहा है। इस बार भी जब यह रहस्यमय बुखार फैलना शुरू हुआ तो उसी प्रक्रिया के तहत इलाज कराया जाने लगा। मगर बदलती स्थितियिों के मुताबिक विषाणु अपना स्वरूप बदलते और पहले से कुछ अधिक ताकतवर रूप में प्रकट होते रहते हैं, इसका खयाल शायद नहीं किया जा रहा। उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में जब ऐसी बीमारियां फैलती हैं, तो उन पर काबू पाना इसलिए भी कठिन हो जाता है कि ग्रामीण इलाकों में उपचार की माकूल सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं। इसलिए ज्यादातर लोग पहले परंपरागत तरीके से इलाज की कोशिश करते हैं। फिर जब मामला बिगडऩे लगता है, तो मरीज को ब्लॉक या छोटे कस्बों के अस्पतालों में ले जाते हैं।
 वहां जांच आदि की जरूरी सुविधाएं उपलब्ध न होने के कारण जिला अस्पताल या किसी बड़े अस्पताल में ले जाने को कहा जाता है। तब तक कई मरीज समय पर इलाज न मिल पाने के कारण दम तोड़ देते हैं। इस बार यही स्थिति अधिक देखी जा रही है। अगर इलाज के अभाव में एक भी नागरिक की मृत्यु हो जाए, तो उसकी नैतिक जिम्मेदारी सरकार की ही बनती है, इसलिए उत्तर प्रदेश सरकार अपनी इस जिम्मेदारी से बच नहीं सकती।