अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। ये दिन पूरी तरह से विघ्नहर्ता भगवान गणेश के पूजन को समर्पित होता है। इस दिन भगवान गणेश का व्रत रखने और विधि पूर्वक पूजन करने से जीवन के समस्त विघ्न और संकट दूर हो जाते हैं और सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। पंचांग के अनुसार इस साल विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी का व्रत 24 सितंबर, दिन शुक्रवार को पड़ रहा है।आइए जानते हैं व्रत और पूजन की सही विधि तथा भगवान गणेश के विघ्ननिवारक मंत्र....
्र व्रत और पूजन की विधि : भगवान गणेश को ऋद्धि - सिद्धि का दाता और विघ्नहर्ता माना जाता है। संकष्टी चतुर्थी के दिन प्रात: काल स्नान आदि से निवृत्त हो कर भगवान गणेश के संकल्प के साथ व्रत रखना चाहिए। भगवान गणेश का पूजन चंद्रोदय के पहले करना शुभ माना जाता है। इस काल में एक चौकी पर लाल या पीले रंग का आसन बिछा कर गणेश जी की प्रतिमा या चित्र को स्थापित करें। सिंदूर से तिलक कर गणेश जी को जल, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य समर्पित करें। गणेश जी को पूजन में दूर्वा जरूर चढ़ानी चाहिए। इसके अलावा भगवान गणेश को लाल, पीले फूल और मोदक या लड्डू का भोग लगाएं इससे गणेश जी शीघ्र प्रसन्न होते हैं। इसके बाद भगवान गणेश की उनके मंत्रों, स्तुतियों का पाठ कर पूजा करनी चाहिए तथा अंत में भगवान गणेश की आरती करें। संकष्टी चतुर्थी का व्रत चंद्र दर्शन करके तोड़ा जाता है।
गणेश जी के मंत्र :
1-'ओम गं गणपतये नम:Ó - भगवान गणेश का ये मंत्र सबसे सरल और सभी सिद्धियों को प्रदान करने वाला है।
2- 'वक्रतुण्डाय हुंÓ - गणेश जी के इस षडाक्षर मंत्र का जाप करने से सभी विघ्नों का नाश होता है और प्रत्येक कार्य में सफलता की प्राप्ति होती है।
3- ऊँ हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा – संकष्टी चतुर्थी के दिन इस मंत्र का जाप करने से सभी प्रकार के रोग, दोष और संकटों से मुक्ति मिलती है।
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