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अहमदाबाद। इस विश्व में अनेक प्रकार के संबंध है। प्रत्येक संबंध की मिठास कुछ अलग ही होती है, लेकिन कुछ संबंधों में कोई-कोई व्यक्तियों को रिप्लेस करने के लिए किसी न किसी को बनाया गया है। जैसे बड़े भाई को पिताजी का दर्जा दिया गया है तो बहन को मां का, मासी को भी मां का दर्जा दिया गया है। वैसे ही शास्त्रकार भगवंतों ने तीर्थंकर परमात्मा का दर्जा आचार्य भगवंतों को दिया है।
प्रशांत मूर्ति, सागर सम गंभीर, सुप्रसिद्ध जैनाचार्य, गीतार्थ गच्छाधिपति प.पू.आ.देव राजयशसूरीश्वरजी म.सा. ने उपस्थित धर्मानुरागी आराधकों को संबोधित करते हुए फरमाया कि जैसे सूर्य और चंद्र दोनों ही अस्त हो जाये तो दीपक द्वारा प्रकाश की प्राप्ति होती है वैसे ही सर्वज्ञ अतिशय युक्त श्री तीर्थंकर परमात्मा के वियोग में आचार्य भगवंत दीपक समान धर्म का सिंचन तथा शासन की प्रभावना करते है। आज तक परमात्मा का शासन चला आया, प्रभु के वचनों का श्रवण कर पा रहे है वो केवल आचार्य भगवंतों की कृपा से ही संभावित हो पाया। परमात्मा ने भी अपनी उपस्थिति में ही गणधर भगवंतों को गच्छ संभालने का कार्य सौंप दिया था। उनकी अनुपस्थिति में इक्कीस हजार वर्ष तक प्रभु का शासन चलेगा केवल आचार्य भगवंतों द्वारा।
उनके संचालन से शासन में पंचाचार की प्रवर्तना तथा शासन की अद्भुत प्रभावना होती है। प्रतिदिन आवश्यक क्रिया में चार स्तुति के जोड़े के बाद जो कायोत्सर्ग आता है वो पंचाचार का आता है। पांच आचार इस प्रकार है:-
ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चरित्राचार, तपाचार, वीर्याचार। इन पंचाचार के विषय में समझाते हुए पूज्यश्री ने फरमाया कि ज्ञानाचार में ज्ञान की आराधना करनी होती है। सम्यग् ज्ञान की प्राप्ति हो वो तो महापुण्याई का प्रतीक है। सद्गुरू के सत्संग से सद्ज्ञान की प्राप्ति होती है। इस तरह ज्ञान की आराधना द्वारा ज्ञानाचार में प्रवर्तन करना होता है। दर्शनाचार यानि श्रद्धा। धर्म में, प्रभु के वचनों में अटूट श्रद्धा रखना। कोई इसलिए वहीं प्रमाण है। जैसे परिवार के सात पीढिय़ों को भले ही हमने नहीं देखा हो लेकिन जो हमें बताया जाये उस पर विश्वास करके चलते है। छभस्थ ऐसे स्वजनों पे यदि हम विश्वास करते है तो क्या सर्वज्ञ कथित वचनों पर विश्वास नहीं करेंगे? अवश्य करेंगे ही ना। चरित्राचार यानि चरित्र की आराधना। सामयिक, पौषध या कोई भी व्रत-पच्चक्खाण द्वारा चरित्र धर्म की आराधना। चाहे कुछ भी हो जाये कुछ व्रतों में, नियमों में मक्कम-अटल रहना चाहिए। व्रत से तो व्रत पालन की शक्ति आती है। तपाचार यानि  तप धर्म की आराधना। बारह प्रकार के तप बताये गए है छ: बाह्य और छ: अभ्यंतर तप। स्वाध्याय-विनय-वैयावच्च-वाचना-पूछना-परावर्तना-अनुप्रेक्षा धर्म ध्यान, आदि तप के प्रकार है। शास्त्रकार भगवंतों ने प्रत्येक प्रकार की आत्माओं के लिए विविध प्रकार के तप बताये है। जिसकी जो शक्ति है वो कर सकते है ताकि कोई आराधना से वंचित ना रहे जाये। वीर्याचार यानि वीर्य को जोड़कर प्रत्येक आराधना करना। शेष चार आचार की आराधना वीर्याचार के बिना अधूरी है। जैसे अंगूठा चारों ऊंगलियों को सपोर्ट करता है वैसे वीर्याचार चारों आचार को सपोर्ट करता है 
पंचाचार प्रवर्तक, शासन प्रभावक सूरीश्वरों के विषय में समझाते हुए पूज्यश्री ने फरमाया कि ऐसे महान आचार्य भगवंतों की स्मृति कर उन सभी को भावपूर्वक वंदन-नमन कर आत्मा को धन्य-पुण्य बनाये। जैसे क्रोडो तारों के बीच एक चंद्र होता है, चंद्र से जैसे तारों की शोभा है वैसे आचार्य भगवंतों से शासन की शोभा है। बस ऐसे महान आचार्य भगवंतों की सेवा-सुश्रुषा से आत्मा को धन्य बनायें।