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नई दिल्ली। चार बार आईपीएल चैंपियन बनने वाली चेन्नई सुपरकिंग्स की टीम तीन साल में दूसरी बार प्लेऑफ में नहीं दिखाई देगी। इससे पहले 2008 से लेकर 2019 तक उसने 10 सीजन में हिस्सा लिया था और हर बार अंतिम चार में अपना स्थान पक्का किया था। 2016 और 2017 में टीम प्रतिबंधित थी। इस बार तो टीम की शुरुआत ही खराब हुई थी। नीलामी में ही काम बिगड़ गया था। उसका खामियाजा अंत तक भुगतना पड़ा। 

महेंद्र सिंह धोनी इस टीम के सबकुछ हैं। फ्रेंचाइजी के मालिक एन श्रीनिवासन से लेकर सीईओ काशी विश्वनाथन ने कई बार यह बात सार्वजनिक रूप से कही है कि टीम से जुड़े सारे फैसले धोनी लेते हैं। इस बार मास्टरमाइंड धोनी से चूक हो गई। वो सही टीम नहीं बना सके, सही कप्तान नहीं चुन सके, सही प्लेइंग-11 नहीं उतार सके। इन सब गलतियों के कारण टीम के लिए यह सीजन निराशाजनक रहा।

चेन्नई की हार की पांच वजहें:
नीलामी में लापरवाही: चेन्नई के लिए नीलामी में सबकुछ सही नहीं रहा। उसने प्रशांत सोलंकी, मुकेश चौधरी और सिमरजीत सिंह जैसे युवा खिलाड़ियों को तो जरूर खरीदा, लेकिन कई ऐसे बुजुर्गों को टीम में शामिल कर लिया जो टीम पर बोझ गए। रॉबिन उथप्पा, अंबाती रायुडू, ड्वेन ब्रावो और क्रिस जॉर्डन टीम के लिए ज्यादा योगदान नहीं दे सके।

दूसरी ओर, फाफ डुप्लेसिस, जोश हेजलवुड, शार्दुल ठाकुर और लुंगी एंगिडी को नहीं खरीदा। अगर इन चारों को नहीं भी खरीदा तो चेन्नई ने अन्य खिलाड़ियों को टीम में लाने की भरपूर कोशिश नहीं की। मध्यक्रम में टीम को एक बेहतर बल्लेबाज की कमी खली। तेज गेंदबाजी में अनुभव की कमी थी।

दीपक चाहर का चोटिल होना: नीलामी के बाद टीम को बड़ा झटका सीजन शुरू होने से पहले लगा। 14 करोड़ में दीपक चाहर को चेन्नई ने खरीदा। उनके ऊपर टीम की तेज गेंदबाजी की जिम्मेदारी थी। टूर्नामेंट से पहले वेस्टइंडीज के खिलाफ टी20 सीरीज के आखिरी मैच में चोटिल हो गए। पहले तो लगा कि चाहर आईपीएल के शुरुआती कुछ मैचों में नहीं खेलने के बाद वापस आ जाएंगे, लेकिन बाद में पूरी तरह बाहर हो गए। उनके नहीं होने से चेन्नई की की सारी योजनाओं पर पानी फिर गया। टीम ने चाहर की जगह किसी अन्य गेंदबाज को लाने की कोशिश भी नहीं की।

कप्तानी के मसले ने उलझाया: नीलामी और दीपक चाहर के बाद टीम को कप्तानी के मसले ने उलझाया। सूरत में महेंद्र सिंह धोनी की कप्तानी में कैंप करने वाली चेन्नई की टीम ने सीजन शुरू होने से दो दिन पहले बड़ा फैसला ले लिया। धोनी ने कप्तानी छोड़ दी और रवींद्र जडेजा कप्तान बनाए गए। जडेजा ने आठ मैचों में कप्तानी की। शुरुआती दो मैचों में तो धोनी ही मैदान पर सक्रिय कप्तान दिखे, लेकिन उसके बाद छह मैचों में जडेजा ने पूरी तरह कमान संभाल ली। वो टीम को एकजुट करने में असफल रहे। दबाव के समय असहाय दिखे और आउट ऑफ फॉर्म भी हो गए।

आठ मैचों में छह हार के बाद जडेजा ने कप्तानी छोड़ने का फैसला किया। धोनी को फिर से कप्तानी मिली। तब तक देर हो चुकी थी। प्लेऑफ की राह कठिन हो चुकी थी। धोनी भी टीम को जीत दिलाने में नाकाम रहे। उन्होंने छह मैचों में कप्तानी की और चार में हार मिली। इस पूरे वाकये ने टीम के अन्य खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर असर डाला।

बल्लेबाजों में निरंतरता की कमी: पिछले सीजन में ऑरेंज कैप जीतने वाले ऋतुराज गायकवाड़ से लेकर अनुभवी बल्लेबाज अंबाती रायुडू तक निरंतर बेहतर प्रदर्शन करने में नाकाम रहे। ऋतुराज ने कुछ अच्छी पारियां जरूर खेलीं, लेकिन उनमें निरंतरता की कमी दिखी। रायुडू एक या दो मैचों में ही चल पाए। यही हाल उथप्पा, मोईन अली, डेवोन कॉनवे और शिवम दुबे का रहा। महेंद्र सिंह धोनी भी एक-दो मैचों में बेहतर प्रदर्शन करने के बाद शांत हो गए। 

युवाओं पर देर से भरोसा जताना: प्लेऑफ की दौड़ से बाहर होने के करीब जब टीम आई तो उसने युवाओं को मौके देने शुरू किए। एन जगदीशन, प्रशांत सोलंकी, मथीशा पथिराना को अंतिम कुछ मैचों में खेलने का मौका मिला। उन्होंने प्रभावित किया। धोनी अगर पहले ही उन्हें टीम में लाते तो नतीजे कुछ और हो सकते थे। मुकेश चौधरी, सिमरजीत सिंह और महेश तीक्षणा की तरह ये खिलाड़ी भी टीम के लिए योगदान दे सकते थे।

चेन्नई के पक्ष में क्या-क्या हुआ?
चेन्नई की टीम भले ही प्लेऑफ से बाहर हो गई, लेकिन उसे कुछ ऐसे युवा खिलाड़ी मिले जो लंबे समय तक टीम को अपनी सेवाएं दे सकते हैं। मुकेश चौधरी, सिमरजीत सिंह, महेश तीक्षणा, एन जगदीशन, प्रशांत सोलंकी और मथीशा पथिराना इस टीम में भविष्य के स्टार हो सकते हैं। पथिराना को तो धोनी ने भी दूसरा मलिंगा बताया। मुकेश ने शुरुआती कुछ खराब मैचों के बाद शानदार गेंदबाजी की। तीक्षणा और सोलंकी की स्पिन जोड़ी घातक साबित हो सकती है।

अब चेन्नई के सामने क्या है चुनौती?
अगले साल फिर धोनी खेलेंगे। ज्यादा संभावना है कि कप्तानी भी वही करें। ऐसे में उनके सामने यह चुनौती रहेगी कि बल्लेबाजी में आमूलचूल परिवर्तन करें। मध्यक्रम में कुछ ऐसे खिलाड़ियों को शामिल करें जो टीम के लिए लंबे समय तक योगदान देने में सक्षम हों। एक-दो बेहतर विदेशी तेज गेंदबाज को टीम में शामिल करना होगा। गायकवाड़ और कॉनवे के विकल्प की भी तलाश करें। ताकि किसी के चोटिल होने पर उसे आसानी से रिप्लेस किया जा सके। अनुभवी खिलाड़ियों को अब विदा करने का समय आ गया है। ऐसे में देखना है कि धोनी इस कठिन फैसले तक पहुंचते हैं या नहीं।