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गुवाहाटी। महाराष्ट्र में सत्तासीन महाविकास अघाड़ी गठबंधन (एमवीए) सरकार पर खतरा मंडरा रहा है। दरअसल, शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे का दावा है कि 40 से ज्यादा विधायक उनके साथ गुवाहाटी में मौजूद हैं। ये सभी विधायक मंगलवार तक गुजरात के सूरत में रखे गए थे। हालांकि, बुधवार सुबह ही सभी को अचानक चार्टर्ड फ्लाइट में बिठाकर असम के इस शहर तक पहुंचाया गया। 

यह शायद पहली बार है जब किसी पार्टी के बागी नेता बड़ी संख्या में पूर्वोत्तर के किसी राज्य में शरण ले रहे हैं। खासकर तब जब महाराष्ट्र में सियासी पारा लगातार गर्म है। ऐसे में यह सवाल सभी के मन में है कि महाविकास अघाड़ी से नाराज बागी विधायकों ने असम को ही शरण लेने के लिए क्यों चुना? क्या गुवाहाटी में शिवसेना के पूर्व नेताओं के रखे जाने के पीछे भाजपा का भी कोई हाथ है? इसके अलावा एक सवाल यह भी है कि इस पूरे मामले में असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा का क्या रुख रहा है?

बागी विधायकों ने क्यों चुना असम?
विधायकों ने शरण लेने के लिए असम को ही क्यों चुना? इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि पूर्वोत्तर का यह राज्य अब तक शिवसेना के प्रभाव से बाहर रहा है। इतना ही नहीं पूर्वोत्तर के बाकी राज्यों में भी इस पार्टी का असर बाकी किसी राज्य जितना नहीं है। दूसरी तरफ मौजूदा समय में पूर्वोत्तर के अधिकतर राज्यों में या तो भाजपा या उसकी सहयोगी पार्टियों की सरकार है। यानी गुवाहाटी का माहौल भाजपा के लिए सबसे उपयुक्त है। 

क्या गुवाहाटी में शिवसेना के नेताओं के रखे जाने के पीछे भाजपा का हाथ?
महाराष्ट्र में उठे संकट को लेकर भाजपा ने अब तक चुप्पी साध रखी है। पार्टी ने यह नहीं बताया है कि वह शिवसेना के बागी विधायकों के साथ संपर्क में है या नहीं? लेकिन पहले बागी विधायकों को गुजरात और फिर असम में रखा जाना इस बात का साफ इशारा है कि महाराष्ट्र के पूरे खेल में भाजपा का ही हाथ है। यह बात बुधवार सुबह असम में हुए घटनाक्रम से भी काफी हद तक साबित हो गई, क्योंकि बागी विधायकों को लेने के लिए आज भाजपा के विधायक सुशांत बोरगोहेन पहुंचे थे। बोरगोहेन खुद भी कांग्रेस के दो बार के विधायक रह चुके हैं और बाद में भाजपा में शामिल हुए थे। 

शिवसेना विधायकों को एयरपोर्ट पर रिसीव करने के बाद बोरगोहेन ने कहा था- "मैं उन्हें (गुजरात से आए शिवसेना विधायकों को) लेने आया हूं। मैंने यह नहीं गिना कि कितने विधायक आए हैं। मैं सिर्फ यहां निजी व्यवहार की वजह से आया हूं। बागी विधायकों ने अपने किसी कार्यक्रम की जानकारी नहीं दी है।"

पूरे विवाद में हिमंत बिस्व सरमा की क्या भूमिका?
हालांकि, इससे ऊपर बागी विधायकों को असम लाने का एक कारण और है। यह वजह हैं राज्य के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा, जिन्हें पार्टी ने पूर्वोत्तर के बाद अब मध्य भारत के एक राज्य में भाजपा की सरकार बनाने से जुड़ी जिम्मेदारी दी है। पार्टी के प्रति एक समर्पित नेता के तौर पर हिमंत बिस्व सरमा ने भाजपा में अहम स्थान हासिल किया है। खासकर कांग्रेस के अंदरखानों में काम कर चुके सरमा के अनुभव का काफी फायदा भाजपा को मिल चुका है। इसलिए महाविकास अघाड़ी (जिसका कांग्रेस भी एक हिस्सा है) की चालबाजियों को समझने में सरमा काफी आगे हैं। 

गौरतलब है कि सुशांत बोरगोहेन सीएम हिमंत बिस्व सरमा के करीबी माने जाते हैं। पिछले साल हुए असम विधानसभा चुनाव में सरमा ने बोरगोहेन के लिए थौओरा विधानसभा क्षेत्र में ही पांच से ज्यादा रैलियां की थीं। इससे साफ है कि बोरगोहेन ने सरमा के निर्देश पर ही बागी विधायकों से मुलाकात की। 

इथना ही नहीं बिमंत बिस्व सरमा को असम का मुख्यमंत्री बनने से पहले नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (नेडा) के तहत पूर्वोत्तर की एकता बनाने का सबसे अहम जरिया माना जाता था। उन्हीं की वजह से भाजपा ने एक के बाद एक पूर्वोत्तर में सरकार बनाने में सफलता पाई। पहले 2016 में असम चुनाव में भाजपा की जीत दिलाने के बाद सरमा को त्रिपुरा, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश में भी पार्टी का झंडा बुलंद करने वाले नेता के तौर पर जाना जाता है। नगालैंड और मेघालय में भाजपा की गठबंधन सरकार के पीछे भी सरमा की राजनीति ही रही है।