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0 अधिकतर मामलों में नक्सली मौत की सजा सुनाते हैं

जगदलपुर। छत्तीसगढ़ और तेलंगाना राज्य की सीमा के जंगल में माओवादियों ने जनअदालत लगाई। इस जनअदालत में एक सरेंडर नक्सली को कटघरे में खड़ा किया गया। यहां मौजूद सैकड़ों ग्रामीणों से पूछा कि इस गद्दार का क्या किया जाए? मार दें या छोड़ दें। ग्रामीणों ने एक स्वर में कहा कि इसने हमें परेशान नहीं किया है। एक मौका दे देते हैं। ग्रामीणों की बात सुनकर माओवादियों ने सरेंडर नक्सली को रिहा कर दिया है। जनअदालत का माओवादियों की चेरला एरिया कमेटी ने खुद वीडियो जारी किया है।

दरअसल करीब 3 से 4 सालों तक नक्सलियों के साथ काम करने के बाद जीवन नामक युवक ने साल 2021 में पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया था। जंगल से निकल कर खुशहाल जिंदगी जी रहा था। नक्सली लगातार इसकी तलाश कर रहे थे। वहीं 20 अगस्त को सुकमा के किस्टाराम के एटूपाका गांव से नक्सलियों ने जीवन का अपहरण कर लिया था। फिर आंखों पर पट्टी बांधकर तेलंगाना और छत्तीसगढ़ राज्य के सीमावर्ती जंगलों में 2 से 3 दिनों तक लगातार घुमाया गया। जिसके बाद तेलंगाना के भद्रादी जिले के एक गांव के जंगल में जनअदालत लगाकर जीवन को कटघरे में खड़ा कर दिया।

इस जन अदालत में आस-पास गांव के सैकड़ों ग्रामीण भी पहुंचे हुए थे। नक्सलियों ने जीवन के हाथ बांधे थे, आंखों पर काली पट्टी बांधी थी। कुछ देर बाद आंखों की पट्टी खोली। नक्सलियों की चेरला एरिया कमेटी के हार्डकोर नक्सलियों ने ग्रामीणों से कहा कि यह गद्दार है। हमारा साथ छोड़कर पुलिस के साथ मिल गया है। हमारी खबर पुलिस को देता है। नक्सलियों ने ग्रामीणों के सामने जीवन से भी यह कबूल करवाया। जिसके बाद जन अदालत में मौजूद ग्रामीणों से पूछा गया कि इस गद्दार का क्या किया जाए? तब ग्रामीणों ने कहा इसे एक मौका और देना चाहिए। फिर नक्सलियों ने जीवन को रिहा कर दिया।

80% प्रतिशत मामले में देते हैं मौत की सजा
अमूमन देखा जाता है कि माओवादी जनअदालत लगाकर या तो बेरहमी से पिटाई करते हैं या फिर सामने वाले की हत्या कर देते हैं। बहुत कम ऐसे मामले आए हैं कि नक्सलियों के जन अदालत से कोई जिंदा लौट आया हो। यदि मामला पुलिस की मुखबिरी से जुड़ा होता है तो नक्सली 80% मामलों में हत्या करते ही हैं। सरेंडर नक्सली की जिंदगी ग्रामीणों ने बचा ली। ग्रामीणों के कहने पर नक्सलियों ने सरेंडर नक्सली को रिहा कर दिया।