Head Office

SAMVET SIKHAR BUILDING RAJBANDHA MAIDAN, RAIPUR 492001 - CHHATTISGARH

tranding

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने कई नाबालिग लड़कियों के यौन उत्पीड़न के आरोपी संत शिवमूर्ति मुरुघा शरणारू को कर्नाटक उच्च न्यायालय की ओर से दी गई जमानत रद्द करते हुए सोमवार को पुलिस को निर्देश दिया कि वह उसे एक सप्ताह के भीतर हिरासत में ले।

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने पीड़ितों में से एक लड़की के पिता की ओर से दायर आपराधिक विशेष अनुमति याचिका पर ये आदेश पारित किया। पीठ ने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत गिरफ्तार आरोपी शरणारू को जमानत देने के कर्नाटक उच्च न्यायालय के आठ नवंबर 2023 के आदेश को पलट दिया और पुलिस से कहा कि उसे (संत) एक सप्ताह के भीतर हिरासत में ले लिया जाए।

याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ दायर अपनी अपील में आरोप लगाया कि आरोपी एक संपन्न और प्रभावशाली व्यक्ति है‌ तथा मामले की सुनवाई शुरू होने वाली है। ऐसे में यदि आरोपी को जमानत पर जेल से बाहर रहने की इजाजत बरकरार रखी गई तो वह पीड़ितों और अन्य गवाहों पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा।
पीठ ने पीड़िता के पिता की याचिका का संज्ञान लेते हुए कहा, “प्रथम दृष्टया यह देखा गया है कि न केवल आरोपियों, बल्कि पीड़ितों के लिए भी निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करने के लिए यह न्याय के हित में होगा कि जिस समय तथ्य के गवाहों की जांच की जाती है, आरोपी शिवमूर्ति मुरुघा शरणारू को हिरासत में रखा जाए।”
शीर्ष अदालत ने कहा, "हम मामले के गुण-दोष पर ध्यान नहीं देंगे, क्योंकि इससे अंततः सुनवाई प्रभावित हो सकती है।"
शीर्ष अदालत ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश (जमानत देने का) के क्रियान्वयन पर आदेश की तारीख से चार महीने के लिए रोक लगा दी और कहा कि रोक का यह आदेश आवश्यकता पड़ने पर दो महीने के लिए बढ़ाया जा सकता है।
शीर्ष अदालत ने शिवमूर्ति को निचली अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया।
पीठ ने निचली अदालत को नए सिरे से आरोप तय करने का भी निर्देश दिया और कहा कि सुनवाई यथासंभव शीघ्रता से और यदि आवश्यक हो तो रोजाना की जानी चाहिए। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि संबंधित तथ्य के गवाहों से चार महीने के भीतर पूछताछ की जाए।
शीर्ष अदालत ने इसके अलावा निचली अदालत को संबंधित पक्षों के आचरण की जांच करने का भी निर्देश दिया और यदि मुकदमे में देरी करने के लिए कोई अनावश्यक प्रयास किया जाता है तो वह इसका एक नोट बनाए और उसके समक्ष (शीर्ष अदालत) भेजे।