0 हाई-स्किल्ड वर्कर को 1035 रुपए
नई दिल्ली। सरकार ने दिवाली से पहले गुरुवार, 26 सितंबर को निर्माण, खनन और कृषि जैसे अनौपचारिक क्षेत्रों में काम करने वाले श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी में बढ़ोतरी का फैसला किया। यह 1 अक्टूबर से लागू होगी।
सरकार का कहना है कि यह बढ़ोतरी महंगाई से निपटने में श्रमिकों की मदद करेगी, क्योंकि औद्योगिक श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) में 2.40 अंकों की बढ़ोतरी हुई है।
सरकार साल में दो बार रिवाइज करती है मजदूरी
सरकार साल में 2 बार- अप्रैल और अक्टूबर में इंडस्ट्रियल सेक्टर में काम करने वाले श्रमिकों को मिलने वाली मजदूरी को रिवाइज करती है। नया वेज तय करने के लिए सरकार कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स में 6 महीने की औसत बढ़ोतरी और इन्फ्लेशन को सोर्स बनाती है।
महंगाई कैसे प्रभावित करती है?
महंगाई का सीधा संबंध पर्चेजिंग पावर से है। उदाहरण के लिए यदि महंगाई दर 6% है, तो अर्जित किए गए 100 रुपए का मूल्य सिर्फ 94 रुपए होगा। इसलिए महंगाई को देखते हुए ही निवेश करना चाहिए। नहीं तो आपके पैसे की वैल्यू कम हो जाएगी।
महंगाई कैसे बढ़ती-घटती है?
महंगाई का बढ़ना और घटना प्रोडक्ट की डिमांड और सप्लाई पर निर्भर करता है। अगर लोगों के पास पैसे ज्यादा होंगे तो वे ज्यादा चीजें खरीदेंगे। ज्यादा चीजें खरीदने से चीजों की डिमांड बढ़ेगी और डिमांड के मुताबिक सप्लाई नहीं होने पर इन चीजों की कीमत बढ़ेगी। इस तरह बाजार महंगाई की चपेट में आ जाता है। सीधे शब्दों में कहें तो बाजार में पैसों का अत्यधिक बहाव या चीजों की शॉर्टेज महंगाई का कारण बनता है। वहीं अगर डिमांड कम होगी और सप्लाई ज्यादा तो महंगाई कम होगी।
सीपीआई से तय होती है महंगाई
एक ग्राहक के तौर पर आप और हम रिटेल मार्केट से सामान खरीदते हैं। इससे जुड़ी कीमतों में हुए बदलाव को दिखाने का काम कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स यानी सीपीआई करता है। हम सामान और सर्विसेज के लिए जो औसत मूल्य चुकाते हैं, सीपीआई उसी को मापता है। कच्चे तेल, कमोडिटी की कीमतों, मेन्युफैक्चर्ड कॉस्ट के अलावा कई अन्य चीजें भी होती हैं, जिनकी रिटेल महंगाई दर तय करने में अहम भूमिका होती है। करीब 300 सामान ऐसे हैं, जिनकी कीमतों के आधार पर रिटेल महंगाई का रेट तय होता है।