0 नॉन फास्टैग गाड़ियों से करते थे वसूली
0 यूपी के इंजीनियर ने रची साजिश
आजमगढ़/लखनऊ। उत्तरप्रदेश एसटीएफ ने एनएचएआई के 200 टोल प्लाजा पर टैक्स वसूली में हो रहे करोड़ों के घोटाले का पर्दाफाश किया है। लखनऊ एसटीएफ की टीम ने बुधवार तड़के 3.50 बजे मिर्जापुर के अतरैला टोल प्लाजा पर छापेमारी कर 3 लोगों को पकड़ा। इनमें मनीष मिश्रा, राजीव कुमार मिश्रा और आलोक सिंह शामिल हैं।
इन लोगों ने टोल प्लाजा पर लगे एनएचएआई के कंप्यूटर में अपना सॉफ्टवेयर इंस्टॉल कर रखा था। इससे बिना फास्टैग गुजरने वाले वाहनों के कलेक्शन से गबन कर रहे थे। 2 साल से अतरैला के शिवगुलाम टोल प्लाजा से रोज 45 हजार रुपए वसूल रहे थे। इस तरह से ये लोग अकेले इसी टोल प्लाजा से अब तक 3 करोड़ 28 लाख रुपए गबन कर चुके हैं। ये लोग अब तक देश के 12 राज्यों के 42 टोल प्लाजा में एनएचएआई के समानांतर सॉफ्टवेयर इंस्टॉल कर चुके हैं। इन राज्यों में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, छत्तीसगढ़, असम, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र, गुजरात, झारखंड, हिमाचल प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल शामिल हैं।
एसटीएफ इंस्पेक्टर दीपक सिंह ने लालगंज थाने में 4 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया। एसटीएफ ने आरोपियों के कब्जे से 2 लैपटॉप, 1 प्रिंटर, 5 मोबाइल, 1 कार और 19000 रुपए बरामद किए हैं। पूछताछ में आरोपियों ने बताया कि 12 राज्यों में करीब 200 टोल प्लाजा पर इस तरह से गड़बड़ी की जा रही है।
लगातार मिल रही थी धोखाधड़ी की शिकायतें
इंस्पेक्टर दीपक सिंह ने बताया कि एनएचएआई के विभिन्न टोल प्लाजा पर गड़बड़ी की शिकायतें मिल रही थीं। ये लोग बिना फास्टैग और फास्टैग अकाउंट में कम पैसे वाले वाहनों को टारगेट करते थे। टोल प्लाजा के बूथ कंप्यूटर में एनएचएआई के सॉफ्टवेयर सर्वर के अलावा अलग से सॉफ्टवेयर इंस्टॉल करते थे। वाराणसी एसटीएफ के एएसपी विनोद सिंह और लखनऊ के एएसपी विमल सिंह की टीम लगातार मामले की मॉनिटरिंग कर रही थी। इसी बीच एसटीएफ को सूचना मिली कि एनएचएआई के सॉफ्टवेयर में अलग से सॉफ्टवेयर बनाने और इंस्टॉल करने वाला व्यक्ति आलोक सिंह वाराणसी में है। एसटीएफ टीम ने बाबतपुर एयरपोर्ट के पास से आलोक सिंह को पकड़ लिया। उससे पूछताछ की जा रही है।
इस तरह से सरकारी पैसे का कर रहे थे गबन
एसटीएफ की पूछताछ में आलोक ने बताया कि मैं एमसीए पास हूं। पहले टोल प्लाजा पर काम करता था। वहीं से टोल प्लाजा का ठेका लेने वाली कंपनियां के संपर्क में आया। इसके बाद टोल प्लाजा मालिकों की मिलीभगत से एक सॉफ्टवेयर बनाया। टोल प्लाजा पर लगे कम्प्यूटर में अपने भी सॉफ्टवेयर को इंस्टॉल कर दिया, जिसका एक्सेस अपने लैपटॉप से कर लिया। इसमें टोल प्लाजा के आईटी कर्मियों ने भी साथ दिया। टोल प्लाजा से बिना फास्टैग के गुजरने वाले वाहनों से दोगुना शुल्क हमारे सॉफ्टवेयर से वसूला जाता था। उसकी भी प्रिंट पर्ची एनएचएआई के सॉफ्टवेयर के समान ही होती थी। इस तरह से मालिकों द्वारा बिना फास्टैग वाले वाहनों से वसूली गई। अवैध वसूली के वाहन को वाहन शुल्क से मुक्त श्रेणी दिखाकर जाने दिया जाता था।
बिना फास्टैग वाले वाहनों से लिए गए टोल टैक्स की औसतन 5% धनराशि एनएचएआई के असली सॉफ्टवेयर से वसूली जाती है, जिससे सामान्य रूप से किसी को शक न हो कि बिना फास्टैग वाले वाहनों का टोल टैक्स खाते में नहीं जा रहा है, जबकि नियमानुसार बिना फास्टैग वाले वाहनों से वसूले जाने वाले टोल टैक्स का 50% एनएचएआई के खाते में जमा करना होता है।
आपस में बांट लेते थे रुपए
आलोक सिंह ने बताया कि घोटाले के रुपए टोल प्लाजा मालिकों, आईटी कर्मियों और अन्य कर्मचारियों के बीच में बांटे जाते थे। सावंत और सुखांतु की देख-रेख में देश के 200 से अधिक टोल प्लाजा पर इस तरह के सॉफ्टवेयर इंस्टॉल किए गए थे। इनसे हर दिन करोड़ों रुपए का गबन किया जा रहा है। 200 में से 42 टोल प्लाजा पर मैंने सॉफ्टवेयर इंस्टॉल किया था। यूपी के आजमगढ़, प्रयागराज, बागपत, बरेली शामली मिर्जापुर और गोरखपुर में यह गबन किया गया है। मैं पिछले दो साल से इस काम से जुड़ा हूं।
मिर्जापुर के टोल प्लाजा में हो रहा था रोज 45000 का गबन
आलोक ने बताया कि मिर्जापुर जिले के अतरैला शिव गुलाम टोल प्लाजा पर इस सॉफ्टवेयर को इंस्टॉल किया गया था। वहां रोजाना 45 हजार रुपए के टोल टैक्स का गबन हो रहा था। STF का कहना है कि अन्य टोल प्लाजा के बारे में भी छानबीन की जा रही है।
छत्तीसगढ़ के इन टोल प्लाजा पर अवैध वसूली
1. भोजपुरी टोल प्लाजा, छत्तीसगढ़
2. महराजपुर टोल प्लाजा, छत्तीसगढ़
3. मुदियापारा टोल प्लाजा, छत्तीसगढ़
4. कुम्हारी टोल प्लाजा, दुर्ग, छत्तीसगढ़
50% एनएचएआई को देना होता है
जिन गाड़ियों में फास्टैग नहीं लगा होता है या रिचार्ज नहीं होता है या ब्लैक लिस्ट हो चुका होता है उनसे दोगुना टोल वसूला जाता है। इसका, जुर्माने वाला हिस्सा यानी आधा एनएचएआई को जाता है। मिर्जापुर टोल प्लाजा में ऐसा नहीं हो रहा था। सिर्फ 5 प्रतिशत ही टोल वास्तविक तौर पर काटा जा रहा था। जिसका फाइन का हिस्सा एनएचएआई को जा रहा था। बाकी, 95% टोल कर्मी से गबन किया जा रहा था।
इलेक्ट्रॉनिक टोल कलेक्शन सिस्टम है फास्टैग
फास्टैग एक इलेक्ट्रॉनिक टोल कलेक्शन सिस्टम है। रेडियो-फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन (आरएफआईडी) टेक्नोलॉजी पर फास्टैग काम करता है। हर फास्टैग गाड़ी की रजिस्ट्रेशन डिटेल के साथ जुड़ा होता है। फास्टैग के आने से पहले टोल प्लाजा पर रुककर टोल फीस कैश में देनी पड़ती थी।
जिन टोल प्लाजा पर अलग से सॉफ्टवेयर इंस्टाल किया गया है, उसकी सूचीः-