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नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने अहमदाबाद में साबरमती आश्रम और उसके आसपास के इलाकों का पुनरुद्धार करने के गुजरात सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली महात्मा गांधी के परपोते तुषार गांधी की याचिका मंगलवार को खारिज कर दी।
न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की पीठ ने गुजरात उच्च न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ दायर याचिका खारिज कर दी, जिसमें इस मामले में याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया गया था।
गुजरात सरकार ने दावा किया था कि 1200 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत वाली इस परियोजना के तहत मौजूदा आश्रम को न तो छेड़ा जाएगा, न ही उसमें कोई बदलाव किया जाएगा।
उच्च न्यायालय ने सितंबर, 2022 में याचिका खारिज करते हुए महसूस किया कि प्रस्तावित परियोजना महात्मा गांधी के विचारों और दर्शन को बढ़ावा देगी और यह व्यापक रूप से मानव जाति के लिए फायदेमंद होगी। पुनरुद्धार के बाद गांधी आश्रम सभी आयु वर्ग के लोगों के लिए सीखने का स्थान होगा।
याचिका में दावा किया गया कि आश्रम को "विश्व स्तरीय संग्रहालय" और "पर्यटक स्थल" बनाने के लिए इसे फिर से डिजाइन और पुनर्विकास करने का निर्णय महात्मा गांधी की (30 सितंबर, 1933 को उनके लिखित निर्देश के अनुसार) व्यक्तिगत इच्छाओं के बिल्कुल विपरीत है। याचिका में यह भी कहा गया कि यह परियोजना साबरमती आश्रम की भौतिक संरचना को बदल देगी और इसकी प्राचीन सादगी को नष्ट कर देगी, जो गांधीजी की विचारधारा को मूर्त रूप देती थी।
याचिका में कहा गया कि परियोजना के क्रियान्वयन से आश्रम गांधीवादी मूल्यों को खो सकता है।
गुजरात सरकार ने अदालत के समक्ष कहा कि महात्मा गांधी के आश्रम में केवल पांच एकड़ का क्षेत्र शामिल है, लेकिन आश्रम की वास्तविक भूमि 300 एकड़ है। पांच एकड़ भूमि को छुआ नहीं जाना चाहिए, लेकिन केवल दो-तिहाई इमारतें जो जीर्ण-शीर्ण हैं, उनका पुनर्निर्माण किया जाना चाहिए।
याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि पुनर्विकास कार्य राष्ट्रीय गांधी स्मारक निधि, साबरमती आश्रम संरक्षण एवं स्मारक ट्रस्ट, खादी ग्रामोद्योग प्रयोग समिति, हरिजन आश्रम ट्रस्ट, साबरमती आश्रम गोशाला ट्रस्ट, हरिजन सेवक संघ सहित ट्रस्टों के अधिकार क्षेत्र में होना चाहिए और मामले में उनकी प्रतिक्रिया को रिकॉर्ड किया जाना चाहिए।