
0 प्रशासन की मिलीभगत से ओबीसी वर्ग को बेची गई जमीन
0 आदिवासी अधिकारों पर हमला
अशोक दीक्षित
छुरा। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र छुरा में एक ऐसा चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जिसने पूरे इलाके में हड़कंप मचा दिया है। ग्राम हीराबतर में एक आदिवासी नागरिक की जमीन को नियम-कानून को ताक पर रखकर पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लोगों के नाम पर रजिस्ट्री कर दिया गया। यह रजिस्ट्री न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों पर सीधा हमला है।
मामले की जड़: एक आदिवासी, दो रजिस्ट्री, दो ओबीसी खरीदार!
गांव हीराबतर निवासी गणेशी पिता विसराम, जो कि अनुसूचित जनजाति (एसटी) वर्ग से हैं, ने अपनी निजी भूमि को किसी आवश्यक कार्य हेतु बेचा। लेकिन इस बिक्री में जो हुआ, वह चौंका देने वाला था-एक ही भूमि की रजिस्ट्री दो बार, और वह भी गैर-आदिवासी (ओबीसी) वर्ग के दो लोगों के नाम। स्थानीय सूत्रों के अनुसार, इस रजिस्ट्री में पटवारी से लेकर रजिस्ट्रार तक की मिलीभगत की आशंका है। मामला साफ तौर पर छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता, पेसा कानून (पेसा एक्ट) और संविधान के आदिवासी सुरक्षा प्रावधानों का घोर उल्लघन है।
स्थानीय लोगों का गुस्सा फूटा
ग्राम हीराबतर और आसपास के गाँवों में इस खुलासे के बाद भारी आक्रोश है। आदिवासी समुदाय ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि हम अपनी ज़मीन किसी गैर-आदिवासी को नहीं देंगे, चाहे कितने ही फर्जी रजिस्ट्रियां क्यों न हो जाएं। यह हमारे अधिकारों की लूट है। स्थानीय आदिवासी समाज, सामाजिक कार्यकर्ता और वकीलों ने इस मुद्दे को ज़बरदस्त तरीके से उठाया है। उनका कहना है कि यह ज़मीन सिर्फ मिट्टी नहीं, हमारी पहचान है! कानून ने हमें हक दिया है, कोई कागज का टुकड़ा हमसे हमारी धरती नहीं छीन सकता।
जनप्रतिनिधियों की चुप्पी संदिग्ध
इस मामले में जनप्रतिनिधियों की चुप्पी संदिग्ध है। मामले की गंभीरता को देखते हुए सवाल उठने लगे हैं कि स्थानीय विधायक, जनपद सदस्य और प्रशासनिक अफसर क्यों चुप हैं? क्या यह सब उनकी जानकारी में हुआ? या फिर मिलीभगत इतनी गहरी है कि पूरा सिस्टम ही मौन साधे बैठा है?
यह लापरवाही है या संगठित घोटाला या षड्यंत्र?
लोगों के बीच चर्चा है कि यह सिर्फ प्रशासन की लापरवाही है या संगठित घोटाला है। जानकारी के मुताबिक इस रजिस्ट्री में बिना कलेक्टर की अनुमति, बिना ग्रामसभा की बैठक, बिना जमीन की जाति-पता पुष्टि और एक ही जमीन की दो अलग-अलग लोगों को बेच देना यह संकेत करता है कि यह सिर्फ 'गलतीÓ नहीं, बल्कि एक सुनियोजित षड्यंत्र हो सकता है। इसमें पटवारी, तहसीलदार, रजिस्ट्री विभाग और स्थानीय दलालों की मिलीभगत की आशंका है।
तहसीलदार से मिला हैरान करने वाला जवाब
जब हमारे संवाददाता ने मामले पर छुरा के तहसीलदार रमेश मेहता से सवाल किया, तो उन्होंने कहा कि फिलहाल उक्त जमीन की प्रमाणीकरण प्रक्रिया पर रोक लगा दी गई है और इस पूरे मामले की जानकारी जिला कलेक्टर को भेज दी गई है। आगे की कार्रवाई कलेक्टर के दिशा-निर्देशों पर की जाएगी। आदिवासी की जमीन की रजिस्ट्री ओबीसी को कैसे कर दी गई? इस पर उन्होंने बात को टालते हुए कहा कि मैं कुछ दिनों के लिए छुट्टी पर जा रहा हूं, लौटकर देखेंगे।
जनता की मांग
1. तत्काल उच्चस्तरीय जांच कमेटी गठित की जाए।
2. रजिस्ट्री रद्द की जाए और ज़मीन वापस आदिवासी को दी जाए।
3. संबंधित पटवारी, तहसीलदार, रजिस्ट्रार को निलंबित कर उनके खिलाफ आपराधिक एफआईआर दर्ज की जाए।
4. इस तरह के मामलों की पुनरावृत्ति रोकने के लिए जिले में विशेष निगरानी समिति बनाई जाए।
रजिस्ट्री निरस्त करने की मांग
1. रजिस्ट्री को तत्काल निरस्त किया जाए।
2. गणेशी पिता विसराम को उनकी ज़मीन वापस लौटाई जाए।
3. पटवारी, तहसीलदार, रजिस्ट्रार पर एफआईआर दर्ज कर सस्पेंड किया जाए।
4. एसडीएम/डीएम स्तर पर जांच कमेटी गठित हो।
5. पेसा कानून के उल्लंघन पर मामला हाईकोर्ट तक ले जाया जाए।
ये सिर्फ जमीन नहीं, आदिवासी अस्मिता का सवाल है
छत्तीसगढ़ में आदिवासियों की जमीनें धीरे-धीरे 'कानूनी जालसाजीÓ के जरिए छीनी जा रही हैं। यह मामला सिर्फ हीराबतर या गरियाबंद का नहीं, पूरे प्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों में फैलते एक खतरनाक चलन का उदाहरण है। अब देखना यह है कि शासन और प्रशासन इस पर क्या कार्रवाई करता है या यह भी साइलेंट फाइल बनकर सरकारी दफ्तरों में धूल खाएगा? यह मामला सिर्फ एक ज़मीन की बिक्री नहीं, बल्कि एक समुदाय के अस्तित्व, उसकी पहचान और उसके संवैधानिक अधिकारों पर हमला है। यदि अब भी शासन-प्रशासन नहीं जागा, तो यह चुप्पी पूरे आदिवासी समाज में विद्रोह की चिंगारी बन सकती है।
क्या पेसा अधिनियम, 1996 (पेसा एक्ट)
यह अधिनियम अनुसूचित क्षेत्रों में आदिवासियों को विशेष अधिकार देता है, जिनमें भूमि पर नियंत्रण प्रमुख है। किसी भी प्रकार की जमीन बिकरिी/हस्तांतरण ग्राम सभा की अनुमति के बिना अवैध मानी जाती है। ग्राम सभा की अनुमति के अभाव में हुई यह रजिस्ट्री, सीधे पेसा अधिनियम की धारा 4(क) और 4(म)(म) का उल्लंघन है।
भारतीय संविधान में प्रावधान
अनुच्छेद 244 और पांचवी अनुसूची: अनुसूचित क्षेत्रों में आदिवासियों के सामाजिक और आर्थिक हितों की रक्षा हेतु विशेष प्रावधान किए गए हैं।
अनुच्छेद 46: राज्य का यह कर्तव्य है कि वह अनुसूचित जातियों और जनजातियों की भूमि की रक्षा करे और उन्हें गैर-आदिवासियों द्वारा शोषण से बचाए।