
0 ईओडब्ल्यू 9 जून तक पूछताछ करेगी
0 वीडियो कांफ्रिंसिंग से पेश हुए लखमा, 20 जून तक जेल में रहेंगे
रायपुर। छत्तीसगढ़ शराब घोटाले मामले में 4 दिन की पुलिस रिमांड पूरी होने के बाद कारोबारी विजय भाटिया को ईओडब्ल्यू ने आज रायपुर के स्पेशल कोर्ट में पेश किया। कोर्ट ने कारोबारी विजय भाटिया की पुलिस रिमांड 9 जून तक बढ़ा दी है। अब ईओडब्ल्यू आगामी तीन दिनों तक भाटिया से पूछताछ करेगी। इस दौरान ईओडब्ल्यू ने भाटिया की कस्टोडियल रिमांड बढ़ाने की मांग की थी।
वहीं इस केस में शामिल पूर्व आबकारी मंत्री कवासी लखमा की न्यायिक हिरासत की अवधि भी बढ़ा दी गई है। शुक्रवार को लखमा की न्यायिक रिमांड पूरी होने पर उन्हें वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए कोर्ट में पेश किया गया। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने उनकी हिरासत 20 जून तक बढ़ाने का आदेश दिया। अब कवासी लखमा 20 जून तक जेल में रहेंगे।
अफसरों ने पप्पू और विजय को आमने-सामने बिठाकर पूछताछ की
बता दें कि ईओडब्ल्यू ने गुरुवार को कारोबारी पप्पू बंसल को पूछताछ के लिए तलब किया था। अफसरों ने पप्पू और विजय को आमने-सामने बिठाकर पूछताछ की है। उनके माध्यम से बैंक ट्रांजेक्शन का रिकार्ड सामने रखा और पूछा कि उन्होंने क्यों और किसलिए कांग्रेस के बड़े नेताओं और उनके रिश्तेदारों के खातों में पैसे ट्रांसफर किए थे।
जांच में ये बात आई सामने
ईओडब्ल्यू ने जांच में पाया है कि भाटिया और बंसल के खाते से कांग्रेस के सीनियर नेताओं और उनके करीबी रिश्तेदारों के खातों में पैसे ट्रांजेक्शन का रिकार्ड मिला है। एसीबी-ईओडब्ल्यू इसी एंगल पर जांच कर रही है कि शराब घोटाले का पैसा किन किन लोगों और राजनेताओं तक पहुंचा है। इसी वजह से ईओडब्ल्यू ने पहले विजय भाटिया को गिरफ्तार किया। विजय अपने परिवार के साथ दिल्ली में था। वह दिल्ली से कहीं विदेश भागने की तैयारी में था। उसके पहले ही ईओडब्ल्यू ने उसे दिल्ली से पकड़ लिया था।
परिचित के नाम से बनाई ओम कंपनी
जानकारी के मुताबिक, ईओडब्ल्यू की जांच में पता चला है कि विजय ने विदेशी कंपनी की शराब सप्लाई कर 15 करोड़ से ज्यादा कमीशन लिया। घोटाले के पैसे प्रॉपर्टी में लगाए हैं। इसकी जांच चल रही है। विजय ने अपने करीबी अतुल सिंह और मुकेश मनचंदा के नाम पर ओम साईं बेवरेज लिमिटेड नामक कंपनी बनाई। इसकी 52 फीसदी हिस्सेदारी विजय ने खुद के पास रखी। यह कंपनी विदेशी शराब कंपनी से शराब खरीदती थी। इसमें अपना 10 प्रतिशत कमीशन जोड़कर सरकार को सप्लाई करती थी। इस कमीशन का 60 फीसदी सिंडिकेट और 40 फीसदी कमीशन खुद रखता था।