
0 विधानसभा की कार्यवाही से आमजनों को अवगत कराने में संसदीय पत्रकार निभाते हैं बड़ी भूमिका : मुख्यमंत्री साय
0 छत्तीसगढ विधान सभा में 'संसदीय रिपोर्टिंग' विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन
रायपुर। छत्तीसगढ विधान सभा परिसर स्थित डॉ. श्यामा प्रसाद मुकर्जी प्रेक्षागृह में शनिवार को मीडिया प्रतिनिधियों के लिए 'संसदीय रिपोर्टिग' विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला का शुभारंभ विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह एवं मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने मां सरस्वती के चित्र के समक्ष दीप प्रज्जवलित कर किया। इस अवसर पर नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरण दास महंत एवं संसदीय कार्यमंत्री केदार कश्यप, विधान सभा सचिव दिनेश शर्मा एवं पत्रकार दीर्घा सलाहकार समिति के संयोजक आर. कृष्णादास भी उपस्थित थे । कार्यशाला के शुभारंभ सत्र में 'संसदीय रिपोर्टिंग' विषय पर भारतीय जन संचार संस्थान के पूर्व निदेशक एवं माखन लाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल के प्रोफेसर डॉ. संजय द्विवेदी तथा समापन सत्र में राज्यसभा सांसद डॉ. सुधांशु त्रिवेदी ने अपने व्याख्यान प्रस्तुत किए। इस आयोजन में बडी संख्या में मीडिया प्रतिनिधि उपस्थित थे।
कार्यक्रम में उद्घाटन सत्र को सम्बोधित करते हुए विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह ने कहा कि जनतंत्र में विधान मण्डल तथा जनसंचार दोनों के ही सरोकार जनहित से जुड़े हैं। सरकार बनने के बाद सबसे पहले मंत्रियों का आईआईएम में प्रशिक्षण हुआ। फिर विधायकों के लिए विधानसभा में प्रबोधन कार्यक्रम और तीसरे चरण में मान. विधायकों के निज सचिव/ निज सहायक के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया और अब मीडिया प्रतिनिधियों के लिए ÓÓसंसदीय रिपोर्टिगÓÓ विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया है। उन्होंने कहा कि जनतंत्र में विधान मंडल तथा जनसंचार दोनों के ही सरोकार जनहित से जुडे हुए हैं। जनता का विधान मंडल के प्रति आस्था एवं विश्वास बढ़े इस दृश्टिकोण से जनसंचार के प्रतिनिधियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है । उन्हांने यह भी कहा कि-आसंदी में सभा की सार्वभौमिकता की शक्ति निहित होती है, इसलिए जनसंचार के प्रतिनिधियों के लिए यह आवश्यक है कि वे सभा की कार्यवाही अपनी कल्पना अथवा संभावनाओं के आधार पर प्रचारित प्रसारित न करें । संसदीय रिपोर्टर के लिए यह आवश्यक है कि उसे संसदीय शब्दावली, संसदीय प्रक्रिया एवं नियमों का ज्ञान होना भी आवश्यक है। उन्हांने जनसंचार माध्यमों के प्रतिनिधियों से आग्रह किया कि वे भावुकता या रोष में सभा की बाधित कार्यवाही को नकारात्मक स्वरूप में प्रस्तुत करने के बजाए सभा में होने वाले संसदीय कार्यों को प्रमुखता के साथ प्रकाशित एवं प्रसारित करें।
संसदीय पत्रकारिता अत्यंत संवेदनशील दायित्व है: डॉ. रमन
विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह ने अपने संबोधन में संसदीय पत्रकारिता की महत्ता बताते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ की 25 वर्षों की स्वर्णिम यात्रा में पत्रकारों का योगदान अतुलनीय रहा है। उन्होंने कहा कि संसदीय पत्रकारिता अत्यंत संवेदनशील दायित्व है, जो सदन की गोपनीयता, अनुशासन और गरिमा को बनाए रखते हुए जनता तक सटीक एवं निष्पक्ष जानकारी पहुंचाने का कार्य करती है। डॉ. सिंह ने कहा कि पत्रकार जब पक्ष–विपक्ष से परे रहकर निष्पक्ष रूप से विधानसभा की कार्यवाही का अवलोकन करते हैं और उसे प्रस्तुत करते हैं, तब लोकतंत्र मजबूत होता है। उन्होंने कहा कि संसदीय प्रणाली की गहरी समझ से ही पत्रकार बेहतर ढंग से जनता को विधानसभा की गतिविधियों से अवगत करा सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि संसदीय पत्रकारिता में विशेष रूप से विधानसभा की प्रक्रिया से जुड़े समाचारों को सरल भाषा में प्रस्तुत करना आवश्यक है, ताकि आमजन तक वे प्रभावी ढंग से पहुंच सकें। विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सिंह ने इस अवसर पर छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ एवं दिवंगत पत्रकारों का पुण्य स्मरण करते हुए कहा कि प्रदेश की पत्रकारिता परंपरा ने सदैव विधानसभा की गरिमा बनाए रखने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
कार्यशाला पत्रकारों के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगी: सीएम साय
कार्यशाला को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने छत्तीसगढ़ राज्य और विधानसभा के रजत जयंती वर्ष की शुभकामनाएं दीं। उन्होंने कहा कि प्रदेश विधानसभा ने भी 25 वर्षों की गौरवमयी यात्रा पूरी की है और लोकतांत्रिक मूल्यों को सुदृढ़ किया है। मुख्यमंत्री श्री साय ने बताया कि हाल ही में विधायकों के लिए भी कार्यशालाओं का आयोजन किया गया था, जिसका लाभ हमारे सदस्यों को मिला है। उन्होंने कहा कि विधानसभा में अनेक नवनिर्वाचित विधायक भी हैं, जिनकी यह जिम्मेदारी है कि वे अपने क्षेत्र की समस्याओं को सदन में उठाएं। इसी तरह पत्रकारों की भी अहम भूमिका है, जो विधानसभा की गतिविधियों को जनता तक पहुंचाते हैं। उन्होंने कहा कि आप सभी पत्रकार बंधु बड़ी मेहनत से विधानसभा की कार्यवाही को कवर करते हैं, जिससे आमजन यह जान पाते हैं कि विधायकों द्वारा उनके मुद्दों को गंभीरता से उठाया जा रहा है। मुख्यमंत्री श्री साय ने छत्तीसगढ़ विधानसभा द्वारा उत्कृष्ट पत्रकारों को सम्मानित करने की परंपरा को भी सराहा और कहा कि इससे पत्रकारों का मनोबल बढ़ता है तथा संसदीय रिपोर्टिंग को प्रोत्साहन मिलता है। उन्होंने विश्वास जताया कि यह कार्यशाला पत्रकारों के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगी और इसके माध्यम से विधानसभा की गतिविधियां और अधिक प्रभावी रूप से जनता तक पहुंचेंगी।
पत्रकार सजगता के साथ लोकतंत्र के संवाहक होते हैं: डॉ. महंत
कार्यशाला में नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत ने पत्रकारों की भूमिका को नारद मुनि की परंपरा से जोड़ते हुए कहा कि पत्रकार समयबद्धता और सजगता के साथ लोकतंत्र के संवाहक होते हैं। डॉ. महंत ने कहा कि इस कार्यशाला के माध्यम से सभी को कुछ नया सीखने का अवसर मिलेगा और संसदीय पत्रकारिता को समझने का दायरा और व्यापक होगा। उन्होंने उम्मीद जताई कि यह आयोजन उपयोगी सिद्ध होगा और पत्रकारों के कार्य को नई दिशा देगा। उन्होंने अपनी लंबी संसदीय यात्रा का स्मरण करते हुए कहा कि इस दौरान पत्रकारों के साथ बिताए गए समय और अनुभव अत्यंत मूल्यवान रहे हैं। उन्होंने पत्रकारों की सजगता, सटीकता और संवेदनशीलता की सराहना की, जो वर्षों से संसदीय गतिविधियों को जनता तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं।
इस अवसर पर संसदीय कार्य मंत्री केदार कश्यप, विधानसभा के सचिव दिनेश शर्मा, आईआईएमसी के पूर्व महानिदेशक संजय द्विवेदी सहित बड़ी संख्या में पत्रकार उपस्थित थे।
संवाद की भारतीय परंपरा की ओर लौट आना होगा: डॉ. संजय द्विवेदी
कार्यशाला के प्रथम सत्र को सम्बोधित करते हुए भारतीय जन संचार संस्थान के पूर्व निदेशक एवं माखन लाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल के प्रोफेसर डॉ. संजय द्विवेदी ने सभा में तारांकित, अतारांकित प्रश्न, व्यवस्था एवं औचित्य के प्रश्न, बजट की कव्हरेज, शून्यकाल, कटौती प्रस्ताव, विधानसभा अध्यक्ष की व्यवस्था, कार्यवाही का विलोपन इत्यादि विषय पर व्याख्यान प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ की विधानसभा अपना रजत जयंती वर्ष मना रही है और यह हिंदी पत्रकारिता के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण अवसर है कि हमारे देश में हिंदी पत्रकारिता अपने 200 वर्ष पूरी कर रही है। उन्होंने कहा कि हिंदी पत्रकारिता संवाद की परंपरा है। हम संवाद करते थे। नारद जी संवाद करते थे। उनका संवाद लोकहित में थे। उनकी विश्वनीयता का स्तर बहुत ऊंचा था। इस कारण उनकी बातों पर देव, दानव व गंधर्व सभी विश्वास करते थे। संवाद अपने आप में एक पाजिटिव है। हमारा संवाद हमेशा लोकहित के लिए होता है, जबकि पश्चिमी परंपरा में खींचतान व विवाद की परंपरा है। उन्होंने कहा कि कहा कि संवाद की भारतीय परंपरा की ओर लौट आना होगा। आजकल न्यूज रूप में न्यूज क्रिएट किया जा रहा है।
डॉ. द्विवेदी ने कहा कि संसदीय रिपोर्टिंग अत्यंत उत्तरदायित्वपूर्ण काम है, जहां भाषा, अनुशासन एवं मर्यादा की महत्वपूर्ण भूमिका है। यदि हम अपनी जमीन छोडेंग़े तो, हमारा जमीर नहीं बचेगा। उन्होंने कहा कि संसदीय रिपोर्टिंग में ब्रेकिंग न्यूज पूरे विश्लेषण के पश्चात ही आम जनों तक आनी चाहिए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सदन की चर्चा में नोकझोंक के साथ-साथ सार्थक चर्चा को भी स्थान दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि पत्रकारों का उत्तरदायित्व आज बढ़ गया है। आज जब सब दरवाजे बंद हो जाते हैं, तो लोग अपनी समस्या लेकर पत्रकार के पास जाते हैं। हमारे देश में संसदीय रिपोर्टिंग 26 जनवरी 1950 को गणतंत्र घोषित होने के बाद शुरू हुई थी। 1947 से 1990 तक अलग हिंदुस्तान था। 1991 के बाद हिंदुस्तान तेजी से बदला है। आज सब कुछ स्मार्ट हो गया है। आजकल यूट्यूब व सोशल मीडिया के कारण पत्रकारों की जिम्मेदारी और बढ़ गई है। आज नैरेटिव बनाया जा रहा है और यह फेक भी हो सकता है। यह सब पश्चिम की पत्रकारिता की देन है। हमें नारद जी की पत्रकारिता की दृष्टि से देखना होगा। इस पर ध्यान न देना चिंता की बात है, इसलिए आज पत्रकारिता और जिम्मेदारी का काम है। हम लोकसभा व विधानसभा में संसदीय रिपोर्टिंग करते हैं। हम रोज का इतिहास लिखते हैं। जब कोई इतिहासकार कोई इतिहास लिखता है तो उनका पहला तथ्य अखबार भी होता है। हम ही आंख-कान-नाक हैं। यहां कोई ब्रेकिंग न्यूज नहीं होता। यही इसका सौंदर्य है। यही इसकी खूबी है। संसदीय रिपोर्टिंग के समय सदन को सिर्फ खबर का सोर्स मत समझिए। हमें समझना होगा कि सदन की खबरें लोकहित में है या राजनीति से प्रेरित। इसे हमें समझना होगा। पत्रकारिता एक दायित्व है।
लाइव प्रसारण होने के कारण पत्रकारों का काम जटिल हो गया है: डॉ. सुधांशु त्रिवेदी
कार्यशाला के समापन सत्र में राज्यसभा सांसद डॉ. सुधांशु त्रिवेदी ने व्यवहारिक पहलुओं पर केन्द्रित करते हुए संसदीय रिपोर्टिं रिपोर्टिंग के संबंध में सारगर्भित जानकारी रोचक शैली में प्रस्तुत की। उन्हांने कहा कि पहले छत्तीसगढ़ राज्य समस्याओं का गढ़ माना जाता था, लेकिन आज छत्तीसगढ़ ने पूरे में विकास के नये सोपान तय कर लिये हैं। उन्हांने कहा कि आज सदन की कार्यवाही का सीधा प्रसारण होने के कारण पत्रकारों का काम अत्यंत जटिल हो गया है । चूंकि जनता को सदन की कार्यवाही के सीधे प्रसारण से सूचना और जानकारी तो मिल जाती है, लेकिन आम जनता उस चर्चा एवं घटनाक्रम का विश्लेषण भी चाहती है। उस चर्चा का इतिहास एवं पृष्ठभूमि भी चाहती है। उन्हांने कहा कि संसद का कानून मानना हर विधान मंडल की बाध्यता है, लेकिन कुछ राज्यों की विधान सभाएं अपनी कार्यवाही स्वयं के तरीके से करती है, ऐसी स्थिति में संसदीय पत्रकारों के लिए रिपोर्टिंग का काम थोड़ा जटिल हो जाता है । उन्होंने कहा कि जब कहीं तेजी से विकास होता है तो कुछ लोग उसे रोकने का प्रयास भी करते हैं, लेकिन इसके पश्चात भी हमोर देश नें विश्व गुरु बनकर अपनी उत्तरोत्तर स्वीकार्यता का प्रमाण प्रस्तुत किया है। डॉ. त्रिवेदी ने कहा कि संसदीय रिपोर्टिंग का संबंध भारतीय नहीं, बल्कि ब्रिटिश संसद से है। जब कई बार लोकसभा व विधानसभा में असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, तो आप लोगों का काम बहुत जटिल हो जाता है। आजकल लाइव टेलीकास्ट का जमाना है। उन्होंने 1998 में यूपी विधानसभा की स्थिति के बारे में बताते हुए कहा कि उस समय राज्य में दो मुख्यमंत्री बन गए थे। उस परिस्थितियों में सही रिपोर्टिंग करना मुश्किल होता है। डॉ. त्रिवेदी ने कहा कि भारत में आपातकाल के बाद ही देश में लोकतंत्र की शुरुआत हुई। वैसे देखा जाए तो असली लोकतंत्र 2014 के बाद आया। उसके पहले तो एक ही पार्टी की सरकार आती-जाती रही। दुनिया में किसी भी देश को पावरफुल बनने के लिए चार चीजें इकॉनामी पावर, मिलिट्री पावर, इंटेलेक्चुअल पावर व कल्चरल पावर जरूरी है। भारत के पास सभी चारों पावर है। भविष्य एआई और क्वांटम कंप्यूटर का जमाना है। इसमें भारत का आगे बढऩा तय है।
इस अवसर पर दोनों प्रमुख वक्ताओं डॉ. संजय द्विवेदी और डॉ. सुधांशु त्रिवेदी का शाल-श्रीफल से सम्मानित किया। कार्यक्रम के अंत में संसदीय कार्यमंत्री केदार कश्यप ने सभी अतिथियों एवं मीडिया प्रतिनिधियों का आभार व्यक्त किया गया।


