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मुंबई। शिवसेना के बगावती विधायकों ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पहली बार चिट्ठी लिखी है। इसमें विधायकों ने उन पर कई बड़े आरोप लगाए हैं। फिर चाहे सीएम का अपनी ही पार्टी के विधायकों से मुलाकात न करने का मुद्दा हो या उन्हें अयोध्या जाने से रोकने का। एकनाथ शिंदे की ओर से ट्विटर पर साझा की गई चिट्ठी में ऐसे कई बड़े आरोप हैं। जो चिट्ठी सामने आई है, उसमें शिवसेना विधायकों ने उद्धव पर कांग्रेस और राकांपा के नेताओं को अपने विधायकों पर तरजीह देने की शिकायत भी की है।

विधायकों की चिट्ठी में क्या कहा गया?
शिंदे की ओर से साझा इस चिट्ठी के नीचे औरंगाबाद पश्चिम विधानसभा सीट से विधायक संजय शिरसाट का नाम लिखा है। यानी सभी विधायकों की ओर से इस चिट्ठी के लेखन का काम शिरसाट ने ही किया है। इसमें उद्धव ठाकरे के बुधवार रात मुख्यमंत्री आवास खाली करने के बाद हुए घटनाक्रम का जिक्र करते हुए कहा गया- "कल वर्षा बंगले के दरवाजे सही मायने में सर्वसामान्य के लिए खुले। बंगले पर जो भीड़ हुई, उसे देखकर दिल खुश हो गया। 

यह दरवाजे पिछले डेढ़ साल से शिवसेना के विधायक यानी हमारे लिए भी बंद थे। विधायक के तौर पर उस बंगले में प्रवेश करने के लिए हमें आपके आजू-बाजू में रहने वाले (आपत्तिजनक शब्द का इस्तेमाल) लोगों की मनुहार करनी पड़ती थी, जो कभी चुनाव लड़कर चुनकर नहीं आए बल्कि विधानपरिषद और राज्यसभा में हमारे जैसे लोगों के कंधे पर चढ़कर पहुंचे हैं।"

पत्र में कहा गया, "ये ही तथाकथित (चाणक्य क्लर्क) हमें दरकिनार कर राज्यसभा और विधान परिषद चुनावों की रणनीति बना रहे थे। उसका नतीजा क्या हुआ, यह पूरे महाराष्ट्र ने देखा है। शिवसेना का मुख्यमंत्री होते हुए भी उनकी ही पार्टी के विधायक होते हुए भी हमें कभी भी वर्षा बंगले में सीधे प्रवेश नहीं मिला। मंत्रालय की छठी मंजिल पर मुख्यमंत्री सबसे मिलते हैं, पर हमारे लिए तो छठी मंजिल का सवाल ही नहीं आया क्योंकि आप कभी मंत्रालय में गए ही नहीं।" 

"विधानसभा क्षेत्र के कामों के लिए, अन्य मुद्दों पर चर्चा के लिए, व्यक्तिगत समस्याओं के लिए सीएम साहेब को मिलना है, ऐसी विनंती कई बार करने के बाद भी सीएम साहेब ने आपको बुलाया है, ऐसा संदेश कभी आपकी तरफ से आया नहीं। घंटों दरवाजे पर खड़े होकर इंतजार करवाया गया। आपको फोन किया तो वे लोग फोन रिसीव नहीं कर रहे थे। अंत में निराश होकर हम वहां से निकल जाते।"

"तीन से चार लाख वोटरों में से जीतकर चुने गए हम पार्टी के विधायकों के साथ ऐसा अपमानजनक व्यवहार क्यों? यह हमारा सवाल है। 

यह परेशानियां हम सभी विधायकों ने सहन की है। हमारी व्यथा, आपके आजू-बाजू के लोगों ने कभी सुनने तक की जेहमत नहीं उठाई। आप तक तो वह बात कभी पहुंचाई ही नहीं गई। इस समय हमारे लिए आदरणीय एकनाथ शिंदे साहेब का दरवाजा खुला था। और विधानसभा क्षेत्र की बुरी स्थिति, विधानसभा क्षेत्र की निधि, अधिकारी वर्ग, कांग्रेस-राष्ट्रवादी की ओर से हो रहा अपमान... हमारी यह सभी समस्याएं सिर्फ शिंदे साहेब ही सुन रहे थे और सकारात्मक रास्ता निकाल रहे थे। इस वजह से हम सभी विधायकों ने न्याय अधिकार के लिए यह निर्णय लेने को मजबूर किया।" 

"हिंदुत्व, अयोध्या, राम मंदिर यह मुद्दे तो शिवसेना के ही हैं न? अब आदित्य ठाकरे अयोध्या में गए तब आपने हमें अयोध्या जाने से क्यों रोका? आपने खुद फोन पर कर विधायकों से कहा कि अयोध्या नहीं जाना है। मुंबई एयरपोर्ट से अयोध्या के लिए रवाना हुए मेरे सहित अन्य विधायकों के लगेज भी चेक-इन हो गए थे। हम विमान में बैठने ही वाले थे कि आपने शिंदे साहेब को फोन कर बोला कि विधायकों को अयोध्या जाने मत दीजिए। जो गए हैं, उन्हें वापस लेकर आओ। 

शिंदे साहेब ने हमें तत्काल कहा कि सीएम साहेब का फोन है कि विधायकों को अयोध्या नहीं जाने देना है। राज्यसभा चुनावों में शिवसेना का एक भी वोट क्रॉस नहीं हुआ था तब विधान परिषद के चुनाव सामने आने पर हम पर इतना अविश्वास क्यों दिखाया गया? हमें रामलला के दर्शन क्यों नहीं करने दिए?" 

"साहेब, जब हमें वर्षा बंगले पर प्रवेश नहीं मिल रहा था, तब हमारे सच्चे विरोधी कांग्रेस और राष्ट्रवादी के लोग आपसे नियमित मिल रहे थे। अपने विधानसभा के काम निपटा रहे थे। निधि मिलने के पत्र दिखाकर खुश हो रहे थे। भूमिपूजन और उद्घाटन कर रहे थे। आपके साथ खींचे गए फोटो सोशल मीडिया पर वायरल  कर रहे थे। उस समय हमारे विधानसभा क्षेत्र के लोग पूछते थे कि मुख्यमंत्री हमारे हैं फिर हमारे विरोधियों को निधि कैसे मिल रही है? उनके काम कैसे हो रहे हैं? आप हमसे मिल ही नहीं रहे थे, तब हम अपने मतदाताओं को क्या जवाब दें, यह सोचकर ही हम विचलित हो जाते।" 

"इन विषम परिस्थितियों में भी शिवसेना के माननीय बालासाहेब ठाकरे, धर्मवीर आनंद दिघे साहेब का हिंदुत्व को आगे बढ़ा रहे एकनाथ शिंदे ने हमें अनमोल साथ दिया। प्रत्येक विषम परिस्थिति के लिए हमारे लिए उनका दरवाजा खुला था, आज भी है और आने वाले कल भी रहेगा, इसी विश्वास के साथ हम शिंदे साहेब के साथ हैं। कल आपने जो बोला, वह काफी भावुक था। लेकिन उसमें हमारे मूल प्रश्नों का जवाब नहीं मिला। इस वजह से हम अपनी भावनाओं को आप तक पहुंचाने के लिए यह भावनात्मक पत्र लिख रहे हैं।"