लेह/पुगा। भारत और आइसलैंड के इंजीनियरों ने लद्दाख के पुगा में भारत के पहले जियोथर्मल प्लांट पर काम शुरू हो चुका है। शुरुआती नतीजे उत्साहजनक रहे हैं। हरेक मीटर ड्रिलिंग के साथ स्टीम की विशाल मात्रा जमीन से बाहर निकल रही है, जो इस क्षेत्र की क्षमता की पुष्टि करते हैं। जियोथर्मल प्लांट में धरती के अंदर की गर्मी पानी को स्टीम में बदलने के लिए इस्तेमाल की जाती है, जिससे बाद में बिजली पैदा की जाती है।
जियोथर्मल बिजली चौबीसों घंटे लगातार चलती है और ये कभी खत्म नहीं होती। भारत में कई गर्म पानी के झरने हैं, जिनमें तापमान इतना है कि उनमें बिजली पैदा करने की क्षमता है। ऐसे सभी जगहों में से लेह लद्दाख के पास पुगा सबसे बड़ा और सबसे प्रोमिसिंग जियोथर्मल साइट है। समुद्र तल से 4400 मीटर की ऊंचाई पर स्थित, पुगा जियोथर्मल साइट लेह से 190 किमी की दूरी पर स्थित है और 5 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है।
10 पड़ोसी गांवों को फ्री बिजली की सप्लाई करेगा
स्पेशल इक्विपमेंट्स के साथ लेवर वर्तमान में हीट सोर्स को टैप करने के लिए गहरी ड्रिलिंग कर रहे हैं। शुरुआती परिणाम उत्साहजनक रहे हैं, क्योंकि इंजीनियरों को केवल 35 मीटर की गहराई पर 100 डिग्री सेल्सियस तापमान मिला है। इस तापमान पर पानी उबलता है। ड्रिलिंग 500 मीटर गहराई तक की जाएगी और बाद में परिणामों के अनुसार साइट की पूरी क्षमता का पता लगाने और टैप करने के लिए ड्रिलिंग 1 किमी की गहराई तक पहुंच जाएगी। शुरुआती दौर में 1 मेगावॉट बिजली के लिए पायलट परियोजना का निर्माण किया जा रहा है। इसे साल के अंत तक पूरा कर लिया जाएगा। यह 10 पड़ोसी गांवों को फ्री बिजली की सप्लाई करेगा। यह छोटी परियोजना भारत की पहली भूतापीय ऊर्जा उत्पादन परियोजना होगी।
पुगा में 100 मेगावाट से अधिक जियोथर्मल एनर्जी
परियोजना के विकास के बाद के चरणों में अधिक गहरे और बड़े कुओं को खोदा जाएगा। इसमें ऊर्जा उत्पादन की बहुत अधिक क्षमता होगी। शुरुआती अनुमानों के मुताबिक पुगा में 100 मेगावाट से अधिक जियोथर्मल एनर्जी की क्षमता है। पिछले साल 08 फरवरी को इस ऐतिहासिक जियोथर्मल प्लांट के लिए केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन लद्दाख, लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद लेह और ओएनजीसी ऊर्जा केंद्र के बीच एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे।