
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को केंद्र सरकार से यह मंथन करने को कहा कि सिविल सेवाओं के दिव्यांग अभ्यर्थियों को किस प्रकार से विभिन्न श्रेणियों में रखा जा सकता है।
न्यायमूर्ति एसए नजीर और न्यायमूर्ति वी. रामासुब्रह्मण्यम की पीठ ने सरकार को निर्देश देते हुए कहा कि दिव्यांगता के प्रति सहानुभूति रखना एक पहलू है, जबकि व्यावहारिकता दूसरा पहलू , इसलिए इस मसले के सभी पहलुओं विचार किया जाना जरुरी है।
अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि ने दलील देते हुए पीठ के समक्ष कहा कि केंद्र सरकार इस मामले पर गौर कर रही है। श्री वेंकटरमणि ने केंद्र सरकार का पक्ष रखने के लिए शीर्ष अदालत से और समय देने का अनुरोध किया। शीर्ष अदालत ने कहा कि वह इस मामले पर आठ सप्ताह बाद अगली सुनवाई करेगी।
उच्चतम न्यायालय ने 25 मार्च अपने एक आदेश में दिव्यांग जनों को भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस), भारतीय रेलवे सुरक्षा बल सेवा (आईआरपीएफएस) आदि सेवाओं के लिए अस्थायी रूप से एक अप्रैल तक भारतीय सिविल सेवा में आवेदन करने की मंजूरी दी थी।