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नई दिल्ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने संविधान को राष्ट्रीय अस्मिता और पहचान का ग्रंथ बताते हुए कहा है कि बीते दशक में हमारी संसद ने इसके मूल्यों पर चलते हुए जन आकांक्षाओं को अभिव्यक्त करने के अनेक कार्य किये हैं।

श्रीमती मुर्मु ने बुधवार को यहां संविधान दिवस के अवसर पर संविधान सदन के केन्द्रीय कक्ष में अपने अभिभाषण में कहा कि संविधान सभा ने संसदीय प्रणाली को अपनाने के पक्ष में जो ठोस तर्क दिये गए थे वे आज भी प्रासंगिक हैं। विश्व के विशालतम लोकतन्त्र में जन-आकांक्षाओं को अभिव्यक्त करने वाली भारतीय संसद, विश्व के अनेक लोकतंत्रों के लिए आज एक उदाहरण के रूप में प्रतिष्ठित है। उन्होंंने कहा कि हमारे संविधान निर्माता चाहते थे कि संविधान के माध्यम से हमारा सामूहिक और व्यक्तिगत स्वाभिमान सुनिश्चित रहे। मुझे यह कहते हुए बहुत प्रसन्नता होती है कि बीते दशक में हमारी संसद ने जन-आकांक्षाओं को अभिव्यक्त करने के अत्यंत प्रभावी उदाहरण प्रस्तुत किए हैं।  

श्रीमती मुर्मु ने कहा कि संविधान निर्माताओं की अपेक्षाओं पर खरा उतरने के लिए वह सभी सांसदों को बधाई देती हैं और कृतज्ञ राष्ट्र की ओर से संविधान सभा के परम सम्माननीय सदस्यों की स्मृति में सादर नमन करती हैं। उन्होंने कहा कि संविधान की अंतरात्मा सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक न्याय, स्वतंत्रता, समता और बंधुता जैसे आदर्शों में अभिव्यक्त होती है।

उन्होंने कहा कि यह खुशी की बात है कि इन सभी आयामों पर संसद सदस्यों ने संविधान निर्माताओं की परिकल्पनाओं को यथार्थ स्वरूप प्रदान किया है। संसदीय प्रणाली की सफलता के ठोस प्रमाण के रूप में, आज भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर तेज गति से अग्रसर है। भारत में लगभग 25 करोड़ लोगों के गरीबी की सीमारेखा से बाहर आने से आर्थिक न्याय के पैमाने पर विश्व की सबसे बड़ी सफलता अर्जित हुई है।

राष्ट्रपति ने कहा कि संविधान में सामाजिक न्याय के आदर्श के अनुरूप देश में समावेशी विकास के प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि 'नारी शक्ति वंदन अधिनियम' लागू होने से महिलाओं के नेतृत्व में विकास के एक नए युग का आरंभ होगा। उन्होंने कहा कि इस वर्ष सात नवंबर से राष्ट्र-गीत 'वन्दे मातरम्' की रचना के 150 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष में देशव्यापी स्मरणोत्सव मनाए जा रहे हैं। यह स्मरणोत्सव भारत माता को समृद्ध, सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने के संकल्प का अवसर है। उन्होंने कहा कि मुझे विश्वास है कि इस राष्ट्रीय संकल्प की सिद्धि के लिए आप सभी सदस्यगण देशवासियों को दिशा और प्रेरणा प्रदान करेंगे।  

उन्होंने कहा कि देश का संविधान, हमारी राष्ट्रीय अस्मिता का ग्रंथ है। यह हमारी राष्ट्रीय पहचान का ग्रंथ है। यह औपनिवेशक मानसिकता का परित्याग करके राष्ट्रवादी विचारधारा के साथ देश को आगे बढ़ाने का मार्गदर्शक ग्रंथ है। उन्होंने कहा कि इसी भावना के अनुरूप, सामाजिक और तकनीकी बदलावों को ध्यान में रखते हुए, आपराधिक न्याय प्रणाली से जुड़े महत्वपूर्ण अधिनियम लागू किए गए हैं।

राष्ट्रपति ने संविधान संशोधन के प्रावधानों के महत्व पर चर्चा करते हुए कहा कि संविधान में ही ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जिसके बल पर भावी पीढ़ियां आवश्यकतानुसार समयानुकूल संशोधन कर सकें। इस प्रकार संविधान निर्माताओं ने हमारे संविधान को गतिशीलता और जीवंतता प्रदान की।

इस अवसर पर उप राष्ट्रपति सीपी राधाकृष्णन, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, संसदीय कार्य मंत्री किरण रिजिजू , राज्यसभा मेंं सदन के नेता जगत प्रकाश नड्डा, राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे, लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और सभी सांसद मौजूूद थे।