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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि पांच सदस्यीय संविधान पीठ राष्ट्रीय राजधानी में सेवाओं के नियंत्रण को लेकर केंद्र तथा दिल्ली सरकार के बीच विधायी एवं कार्यकारी शक्तियों के दायरे से जुड़े कानूनी मुद्दे पर सात सितंबर को सुनवाई करेगी।

भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) उदय उमेश ललित की अगुवाई वाली पीठ ने दिल्ली सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता ए एम सिंघवी की उन दलीलों पर गौर किया कि मामले को कुछ तात्कालिकता के कारण एक पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाए।

सीजेआई ने कहा, ‘‘मैं न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ से चर्चा करूंगा। हम सात सितंबर को न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली एक संविधान पीठ के समक्ष इसे सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करेंगे।’’केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वह मुकदमे की तैयारी के लिए कुछ और दिनों का वक्त मांगेंगे।

इससे पहले, उच्चतम न्यायालय ने 22 अगस्त को कहा था कि उसने राष्ट्रीय राजधानी में सेवाओं के नियंत्रण को लेकर केंद्र तथा दिल्ली सरकार की विधायी एवं कार्यकारी शक्तियों के दायरे से संबंधित कानूनी मुद्दों पर सुनवाई करने के लिए न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की अगुवाई में पांच सदस्यीय संविधान पीठ का गठन किया है। शीर्ष न्यायालय ने छह मई को दिल्ली में सेवाओं के नियंत्रण का मुद्दा पांच-सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेजा था।

प्रधान न्यायाधीश ने तब कहा था, ‘‘इस पीठ को भेजा गया मामला केंद्र तथा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की विधायी और कार्यकारी शक्तियों से संबंधित है। इस अदालत की संविधान पीठ को संविधान के अनुच्छेद 239एए(3)(ए) की व्याख्या करते हुए राज्य सूची में प्रविष्टि 41 के संबंध में उसके असर की खासतौर से व्याख्या करने की कोई वजह नजर नहीं आयी।’’

उसने कहा, ‘‘अत: हम उपरोक्त सीमित मुद्दे को आधिकारिक फैसले के लिए किसी संविधान पीठ के पास भेजना उचित समझते हैं।’’

संविधान में दिल्ली की स्थिति और शक्ति से संबंधित अनुच्छेद 239एए का उप-खंड 3 (ए) राज्य सूची या समवर्ती सूची में शामिल मामलों पर दिल्ली विधानसभा के कानून बनाने के अधिकार से जुड़ा है।

केंद्र सरकार ने सेवाओं के नियंत्रण और संशोधित जीएनसीटीडी अधिनियम, 2021 की संवैधानिक वैधता और विधायी कामकाज के नियम को चुनौती देने वाली दिल्ली सरकार की दो अलग-अलग याचिकाओं पर संयुक्त रूप से सुनवाई करने का अनुरोध किया था। जीएनसीटीडी अधिनियम में उपराज्यपाल को कथित तौर पर अधिक शक्तियां प्रदान की गयी है।

यह याचिका 14 फरवरी 2019 के उस खंडित फैसले को ध्यान में रखते हुए दायर की गयी है, जिसमें न्यायमूर्ति ए. के. सीकरी और न्यायमूर्ति अशोक भूषण (अब दोनों सेवानिवृत्त) की पीठ ने भारत के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश को उनके विभाजित फैसले के मद्देनजर राष्ट्रीय राजधानी में सेवाओं के नियंत्रण के मुद्दे पर अंतिम फैसला लेने के लिए तीन-सदस्यीय पीठ के गठन की सिफारिश की थी।

न्यायमूर्ति भूषण ने तब कहा था कि दिल्ली सरकार के पास प्रशासनिक सेवाओं पर कोई अधिकार नहीं हैं। हालांकि, न्यायमूर्ति सीकरी की राय उनसे अलग थी।