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नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता के तहत यौन उत्पीड़न के लिए पीड़ित महिला के पति को अपवाद मानने के मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय के विभाजित फैसले के बाद दायर याचिकाओं पर शुक्रवार को केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया।

न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति बी वी नागरत्न की पीठ ने उच्च न्यायालय के 11 मई के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा और कहा कि वह इस मामले में अगले साल फरवरी विचार करेगी। पीठ ने लंबित सभी मामलों को समाहित करने का फैसला करते हुए कहा कि वह इस मामले की जांच करेगी।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस साल 11 मई में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 375 के अपवाद 2 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर एक विभाजित निर्णय दिया था।

जनहित याचिकाओं पर सुनवाई के बाद न्यायमूर्ति राजीव शकधर ने वैवाहिक दुष्कर्म अपवाद को खारिज कर दिया, जबकि पीठ के अन्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति सी हरिशंकर ने निष्कर्ष निकाला था कि आईपीसी के तहत प्रावधान असंवैधानिक नहीं है और एक अंतर पर आधारित है। केंद्र सरकार ने उच्च न्यायालय के समक्ष इस मुद्दे पर यह कहते हुए कोई रुख नहीं अपनाया था कि उसे राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों सहित सभी हितधारकों से परामर्श करने की आवश्यकता है।

शीर्ष अदालत के समक्ष 'ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वीमेन्स एसोसिएशन' की ओर से पेश अधिवक्ता करुणा नंदी ने दलील देते हुए कहा कि यहां मामले में कानून का एक बड़ा सवाल है। अलग-अलग विचार व्यक्त करने वाले उच्च न्यायालय के दो न्यायाधीश एकमत थे कि इस मामले में शीर्ष अदालत द्वारा विचार किया जाना चाहिए। .
वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायण ने 2018 से लंबित एक मामले को मूल याचिका में समाहित करने की मांग की थी। उनका कहना था कि लिए बार-बार अनुरोध के बावजूद सुनवाई नहीं की जा सकी।