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सेना में महिलाओं के हक पर कोर्ट की सख्ती
हमारी सेनाओं में भी महिलाओं के साथ भेदभाव, दोयम दर्जा एवं बेचारगी वाला नजरिया दुर्भाग्यपूर्ण एवं असंगत है।
कोरोना : दो लॉकडाउन के बीच खड़ा देश
आज से ठीक एक साल पहले के आशंकित और आतंकित दिनों को याद कीजिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 मार्च को 'जनता कफ्र्यूÓ का आह्वान किया था। समूचे देश के पहिए थम गए थे, दुकानों के शटर नहीं उठे थे, कल-कारखानों की मशीनें बंद हो गई थीं और बेहद जरूरी सेवाओं के अ
निजीकरण एकमात्र विकल्प नहीं है
इंदिरा गांधी ने 1969 में जब बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया था, तब उनके सामने देश के सुदूरवर्ती जनता को सरकार की योजनाओं से जोडऩे की चुनौती थी. सरकार का मानना था कि वाणिज्यिक बैंक सामाजिक उत्थान के कार्यों में योगदान नहीं कर रहे हैं।
संत चैतन्य महाप्रभु की कृष्णलीलाएं हैं अद्भुत
टैतन्य महाप्रभु भारतीय संत परम्परा के वैष्णव धर्म के भक्ति योग के परम प्रचारक एवं भक्तिकाल के प्रमुख कवियों में से एक हैं, वे एक महान् संत, समाज सुधारक एवं क्रांतिकारी प्रचारक थे।
दो लॉकडाउन के बीच खड़ा देश
आज से ठीक एक साल पहले के आशंकित और आतंकित दिनों को याद कीजिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 मार्च को 'जनता कफ्र्यूÓ का आह्वान किया था।
सियासत और सियासी गतिविधियां
उत्तराखंड में भाजपा ने अपनी सरकार का नेतृत्व परिवर्तन करने की कोई वजह नहीं बताई। रावत की जगह बस सांसद तीरथ सिंह रावत बन गए मुख्यमंत्री
झूठ के सहारे लोकप्रियता 'ठगने' का यह नया चलन
अपने बिहार प्रवास के दौरान पिछले दिनों मुझे नालंदा व राजगीर जैसे पर्यटक स्थलों पर दूसरी बार जाने का अवसर मिला।
जल संरक्षण पर सिर्फ बड़ी-बड़ी बातें करने से काम नहीं चलेगा, निर्णायक कदम उठाने होंगे
बिन पानी सब सून....इन शब्दों की गंभीरता को समझना होगा! अगर नहीं समझे तो अंजाम भुगतने के लिए तैयार भी रहें? बेपानी के कुछ ताजा उदाहरण हमारे सामने हैं। गाजियाबाद में दो दिन पहले दूषित पानी पीने से एक साथ सौ बच्चे बीमार पड़ गए।
दत्तात्रेय होसबोले को संघ की पहरेदारी का दायित्व
आजादी का अमृत महोत्सव मनाते हुए भारतीयता को मजबूती देने की फिजाएं बन रही है। न केवल भारतीयता बल्कि हिन्दुत्व को भी नया आयाम एवं नयी ऊर्जा मिल रही है। देश एवं दुनिया भारत की आजादी के 75वें वर्ष में न केवल हिन्दुत्व को समझने के लिये उत्सुक है बल्कि हिन्दुत्
वनों को लेकर समझ बढ़ाने की जरूरत
वनों के महत्व को समझने-समझाने में हम आज तक चूक कर रहे हैं। इसका सबसे बड़ा प्रमाण यही है कि हम लगातार वनों को खो रहे हैं। भारतीय वन सर्वेक्षण कितना भी दावा कर ले, पर वनों का प्रतिशत संतोषजनक नहीं माना जा सकता। यह वनों की परिभाषा के प्रति हमारी नासमझी को भी